क्या आपको इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) खुद फाइल करने में दिक्कत आ रही है। आप अपनी टैक्स लायबिलिटी का कैलकुलेशन सही नहीं कर पा रहे? तो आप घर बैठे आप ऑनलाइन कंसल्टेंट की मदद ले सकते है। आप फ्री सेल्फ-फाइलिंग से लेकर एक्सपर्ट-एसिस्टेड सर्विसेज की मदद ले सकते हैं। ऑनलाइन टैक्स कंसल्टेंट टैक्सपेयर्स की इनकम के सोर्सेज के हिसाब से फीस लेते हैं। ऐसे टैक्सपेयर्स जिनके इनकम के कई स्रोत होते हैं, कैपिटल गेंस होता है उनका रिटर्न फाइल करना जटिल होता है। ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए रिटर्न फाइलिंग फीस ज्यादा होती है।
इनकम का स्रोत सिर्फ एक है तो खुद फाइल कर सकते हैं रिटर्न
ऐसे टैक्सपेयर्स जिनकी इनकम का सिर्फ एक स्रोत है, वे खुद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ई-फाइलिंग वेबसाइट पर जाकर रिटर्न फाइल कर सकते हैं। इसके लिए कोई चार्ज नहीं लगता है। कुछ प्लेटफॉर्म काफी कम फीस में रिटर्न फाइलिंग की सुविधा देते हैं। उदाहरण के लिए जियोफाइनेंस का सेल्फ-फाइलिंग प्लान 24 रुपये से शुरू होता है। यह उन टैक्सपेयर्स के लिए अच्छा है, जिनकी इनकम का स्रोत सिर्फ सैलरी है। हालांकि, ऐसी सर्विस देने वाले ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स का शुरुआती प्लान 400-500 रुपये से शुरू होता है।
एक से ज्यादा इनकम के स्रोत होने पर ज्यादा कैलकुलेशन की जरूरत
क्लियरटैक्स टैक्सपेयर्स को सिर्फ 199 रुपये की फीस में सेल्फ-फाइलिंग सर्विस ऑफर करता है। टैक्स2विन का ऑफर 499 रुपये से शुरू होता है। टैक्सबडी का 699 रुपये से शुरू होता है। जटिल रिटर्न यानी ऐसे रिटर्न जिनमें कैलकुलेशन की ज्यादा जरूरत पड़ती है, उसके लिए एक्सपर्ट-एसिस्टेड फाइलिंग प्लान उपलब्ध हैं। ऐसे प्लान में टैक्स प्रोफेशनल का गाइडेंस उपल्बध होता है। ऐसी सुविधा की शुरुआती फीस करीब 799 रुपये है।
सीए-एसिस्टेड रिटर्न फाइलिंग की फीस थोड़ी ज्यादा
जियोफाइनेंस सीए-एसिस्टेड फाइलिंग 999 रुपये में ऑफर करता है। टैक्सबडी भी 999 रुपये में यह सर्विस देता है। क्लियरटैक्स की यह सर्विस 1,299 रुपये में मिलती है। टैक्स2विन की सर्विस का चार्ज 799 रुपये सके 7,968 रुपये के बीच है। यह फीस इस बात पर निर्भर करती है कि रिटर्न में कैलकुलेशन कितना है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी टैक्सपेयर्स की इनकम के सिर्फ एक स्रोत हैं तो वह शुरुआती प्लान ले सकता है।
डेडलाइन बढ़ने का इंतजार नहीं करें टैक्सपेयर्स
एक्सपर्ट्स का कहना है कि टैक्सपेयर्स को टैक्स फाइलिंग डेडलाइन बढ़ने का इंतजार नहीं करना चाहिए। इसमें काफी रिस्क है। अगर डेडलाइन नहीं बढ़ी तो ऐसे में टैक्सपेयर्स को पेनाल्टी और टैक्स पर इंटरेस्ट चुकाना होगा। साथ ही रिफंड आने भी काफी देर हो सकती है।