60:40 Investment Rule: निवेश की दुनिया में 60:40 नियम काफी समय से एक जाना-पहचाना तरीका रहा है। इस नियम के अनुसार, आपकी कुल पूंजी का 60% हिस्सा शेयर बाजार यानी इक्विटी में और 40% हिस्सा बॉन्ड या फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स जैसे डेब्ट फंड में लगाते हैं। इसका मकसद यह है कि एक तरफ आप लंबे पीरियड में अच्छे रिटर्न पाएं, और दूसरी तरफ कुछ हद तक सेफ और स्थिर इनकम भी बनी रहे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह फॉर्मूला आज के बदलते समय में भी काम करेगा?
क्या सही है निवेश का 60:40 का नियम
60:40 नियम आज भी निवेश की अच्छी शुरुआत हो सकता है, लेकिन हर किसी के लिए इसका फॉर्मूला अलग हो सकता है। आज निवेश की दुनिया में लचीलापन और समझदारी सबसे जरूरी है। सिर्फ किसी नियम को आंख बंद कर अपनाने से बेहतर है कि आप अपनी जरूरत और जोखिम को समझकर ही निवेश करें।
एक्सपर्ट के मुताबिक यह मॉडल अभी भी उपयोगी है, लेकिन आज के समय में हर निवेशक के लिए इसे उसी तरह अपनाना सही नहीं होगा जैसा पहले होता था। बाजार में तेजी से बदलाव हो रहे हैं, कभी वैश्विक संकट, कभी टेक्नोलॉजी बूम और कभी ब्याज दरों में बदलाव। ऐसे में निवेशकों की सोच और प्राथमिकताएं भी बदली हैं।
'द वेल्थ कंपनी में मैनेजिंग पार्टनर प्रसन्ना पाठक के मुताबिक बॉन्ड पर मिलने वाला रिटर्न अब काफी अच्छा है और इंटरनेशनल शेयर बाजार भी सस्ते वैल्यूएशन पर हैं। इसलिए 60:40 मॉडल आज भी मजबूत आधार हो सकता है। हालांकि, उन्होंने ये भी माना कि हर किसी के लिए ये मॉडल ज्यों का त्यों काम नहीं करेगा।
नए जमाने के निवेशक क्या चाहते हैं?
टाटा एसेट मैनेजमेंट के इक्विटी प्रमुख राहुल सिंह कहते हैं कि अब युवा निवेशक जोखिम लेने से नहीं डरते। वे तेज रिटर्न की तलाश में स्मॉल-कैप और थीमैटिक फंड्स (जैसे AI, ग्रीन एनर्जी) में पैसा लगा रहे हैं। हालांकि, ये फंड्स काफी उतार-चढ़ाव वाले हो सकते हैं। राहुल की सलाह है कि ऐसे निवेशकों को फ्लेक्सी-कैप या मिड-लार्ज कैप जैसे संतुलित फंड्स में निवेश करना चाहिए ताकि जोखिम और रिटर्न का संतुलन बना रहे।
क्या 60:40 में बदलाव जरूरी है?
मॉर्निंगस्टार इंडिया के रिसर्च डायरेक्टर कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं कि 60:40 नियम कोई फिक्स फॉर्मूला नहीं है, ये सिर्फ एक शुरुआती गाइडलाइन है। असली काम है अपने निवेश टारगेट और जोखिम उठाने की क्षमता के हिसाब से पोर्टफोलियो बनाना। वह चेतावनी देते हैं कि बहुत सारे युवा निवेशक तो जोखिम लेने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके पास उतना फाइनेंशियल बैकअप नहीं होता। ऐसे में अगर कोई एक सेक्टर गिरता है, तो बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए हमेशा पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन जरूरी है।
भविष्य के लिए कैसी हो रणनीति?
अगले 5-10 सालों के लिए निवेश योजना बनाते समय एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और जरूरत हो तो उसमें बदलाव करें।
राहुल सिंह कहते हैं कि अब सिर्फ इक्विटी और डेट नहीं, बल्कि सोना (गोल्ड) भी एक अहम निवेश विकल्प बन रहा है। मल्टी-एसेट फंड्स, जो एक साथ कई तरह की एसेट क्लास में निवेश करते हैं, भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं। प्रसन्ना पाठक की राय है कि टेक्नोलॉजी, फाइनेंस और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर आने वाले समय में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, इसलिए इन पर ध्यान देना चाहिए।