भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में रेपो रेट में कटौती का बड़ा फैसला लिया है। इस कदम से लोन लेने वालों के लिए राहत की खबर आई है क्योंकि EMI घटेगी, लेकिन दूसरी ओर सुरक्षित निवेश पसंद करने वाले एफडी (Fixed Deposit) निवेशकों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है। दरअसल, रेपो रेट घटने का सीधा असर बैंकों की जमा योजनाओं पर पड़ता है और एफडी पर मिलने वाला ब्याज धीरे-धीरे कम होने लगता है।
जो लोग स्थिर और सुरक्षित रिटर्न चाहते हैं, उनके लिए एफडी हमेशा से भरोसेमंद विकल्प रहा है। लेकिन रेपो रेट कटौती के बाद बैंकों ने एफडी पर ब्याज दरें घटानी शुरू कर दी हैं। उदाहरण के तौर पर, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने हाल ही में अपनी कुछ एफडी योजनाओं पर ब्याज दरों में 10 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में एफडी से मिलने वाला रिटर्न और कम हो सकता है।
ऐसे माहौल में निवेशकों के सामने बॉन्ड्स एक आकर्षक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। बॉन्ड्स, खासकर सरकारी और कॉरपोरेट बॉन्ड्स, लंबी अवधि में बेहतर यील्ड दे सकते हैं। रेपो रेट घटने से बॉन्ड की कीमतें बढ़ती हैं और निवेशकों को पूंजीगत लाभ का मौका मिलता है। हालांकि, बॉन्ड्स में एफडी जैसी गारंटी नहीं होती और इनमें मार्केट रिस्क जुड़ा रहता है।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशकों को जल्दबाज़ी में एफडी से पैसा निकालकर बॉन्ड्स में नहीं लगाना चाहिए। एफडी उन लोगों के लिए सही है जो निश्चितता और सुरक्षा चाहते हैं। वहीं, बॉन्ड्स उन निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो लंबी अवधि तक निवेश कर सकते हैं और थोड़े जोखिम उठाने को तैयार हैं। आदिल शेट्टी, CEO बैंक बाजार डॉट कॉम के अनुसार, “रेपो रेट कटौती से एफडी पर ब्याज दरें तुरंत नहीं गिरेंगी, लेकिन यह निम्न दरों के दौर की शुरुआत हो सकती है। ऐसे में निवेशकों को अपनी जोखिम क्षमता और निवेश अवधि को ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहिए।”
रेपो रेट कटौती ने निवेशकों के सामने एक नई चुनौती रख दी है। अगर आपका लक्ष्य सुरक्षित और स्थिर रिटर्न है तो एफडी अभी भी बेहतर विकल्प है। लेकिन अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं और मार्केट रिस्क उठाने को तैयार हैं, तो बॉन्ड्स आपके पोर्टफोलियो में विविधता और बेहतर रिटर्न ला सकते हैं।