Family Pension: शादीशुदा बेटी को भी पिता की पेंशन मिलेगी। मां के जाने के बाद फैमिली पेंशन पर बेटी का अधिकार होगा। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। अब 70% दिव्यांग शादीशुदा बेटी को उसके दिवंगत पिता की परिवार पेंशन देने से सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता, क्योंकि वह शादीशुदा है या उसके पति की इनकम तय लिमिट से अधिक है।यह फैसला उस बेटी के पक्ष में आया है, जिसने सरकारी विभाग द्वारा पेंशन रोकने के फैसले को चुनौती दी थी। इससे पहले लेबर कोर्ट (CAT) ने सरकार के फैसले को सही बताया था, जिसके बाद बेटी ने हाई कोर्ट का रुख किया।
बेटी के पिता 10 अक्टूबर 2014 को निधन हो गया। वह जून 1999 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए थे और पेंशन पा रहे थे। मां के गुजरने के बाद बेटी ही एकमात्र कानूनी वारिस थी, जो 70% दिव्यांग भी है। उन्होंने अपने पिता की परिवार पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन सरकार ने डॉक्यूमेंट की कमी और पति की इनकम का हवाला देते हुए पेंशन देने से मना कर दिया।
सरकार का कहना था कि बेटी शादीशुदा है। पति सरकारी नौकरी करता है और 4.22 लाख रुपये सालाना कमाता है। इसलिए वह पिता पर निर्भर नहीं मानी जा सकती। लेकिन बेटी पहले से दिव्यांग थी और खुद कोई आमदनी नहीं करती थी। सरकार ने नियमों का गलत इस्तेमाल का आरोप लगा दिया। सरकार ने Punjab Civil Services Rules का हवाला देकर कहा कि पति की इनकम 3500 रुपये + डीए मंथली की लिमिट से ज्यादा है, इसलिए पेंशन नहीं मिलेगी।
लेकिन हाई कोर्ट ने साफ कहा कि विवाह स्थिति महत्व नहीं रखती। दिव्यांग बेटी को पेंशन देने में शादीशुदा होना मायने नहीं रखता। पति की आय गिनना गलत। पति की सैलरी को बेटी की आय मानना नियमों के खिलाफ है। दिव्यांग बेटी जीवनभर पेंशन की हकदार होगी। अगर बेटी मानसिक या शारीरिक रूप से इतनी दिव्यांग हो कि वह खुद आजीविका नहीं कमा सकती, तो उसे उम्र और शादी दोनों के बावजूद जीवनभर पेंशन मिलेगी। हाई कोर्ट ने कहा सरकार ने गलत तरीके से दावा खारिज किया।
कोर्ट ने बताया कि बेटी ने सभी डॉक्यूमेंट जमा किए थे। सरकार ने बिना सही जांच किए उसका दावा खारिज कर दिया। पति की आय को बेटी की आय मानना पूरी तरह गलत है। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि दिव्यांग बेटी को पेंशन न देना अनुचित और नियमों के विपरीत है।
हाई कोर्ट ने सुनाया अंतिम फैसला
बेटी परिवार पेंशन की हकदार है। पेंशन तुरंत जारी की जाए। बकाया अमाउंट पर 9% ब्याज भी दिया जाए। सरकार को 25,000 रुपये केस खर्च भी देने होंगे। हाई कोर्ट का यह निर्णय दिव्यांग महिलाओं और उनके अधिकारों के लिए एक बड़ी राहत माना जा रहा है। यह बताता है कि शादी के बाद भी दिव्यांग बेटी अपने माता-पिता के अधिकारों से वंचित नहीं की जा सकती।