क्या आप म्यूचुअल फंड की स्कीम का चुनाव खुद करते हैं या किसी की सलाह लेते हैं? ज्यादातर इनवेस्टर्स किसी दोस्त-रिश्तेदार को देख या इंटरनेट साइट्स पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर निवेश के लिए म्यूचुअल फंड स्कीम को सेलेक्ट करते हैं। पहली नजर में इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती। लेकिन, गहराई में जाने पर पता चलता है कि ऐसा करने से ज्यादातर इनवेस्टर्स ज्यादा रिटर्न कमाने का मौका चूक जाते हैं। इसकी वजह है कि अलग-अलग स्कीम के साथ अलग-अलग रिस्क जुड़े होते हैं। अगर स्कीम इनवेस्टर्स के रिस्क प्रोफाइल और फाइनेंशियल गोल से मैच नहीं करती है तो आगे उसे दिक्कत हो सकती है।
इनवेस्टमेंट के गोल के मुताबिक होनी चाहिए स्कीम
म्यूचुअल फंड के मार्केट में सैकड़ों स्कीम्स हैं। इनवेस्टमेंट एडवाइजर इनवेस्टर के रिस्क लेने की कपैसिटी और उसके फाइनेंशियल गोल्स को ध्यान में रख सही स्कीम का चुनाव करने में इनवेस्टर की मदद करता है। इतना ही नहीं, पोर्टफोलियो में शामिल सभी स्कीम्स के बीच एलाइनमेंट जरूरी है। इसके अलावा इनवेस्टर के निवेश की अवधि के हिसाब से भी स्कीम्स बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए अगर इनवेस्टर का फोकस लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएट करने पर है तो उसके लिए इक्विटी स्कीम सही रहेगी। अगर कोई इनवेस्टर्स छोटी अवधि के लिए इनवेस्ट करना चाहता है तो उसके लिए डेट फंड सही रहेगा। सोचसमझकर स्कीम का चुनाव तब और जरूरी हो जाता है, जब खास मकसद जैसे रिटायरमेंट, बच्चों के हायर एजुकेशन या घर खरीदने के लिए इनवेस्ट करना चाहते हैं।
फाइनेंशियल एडवाइजर्स सलाह के लिए लेते हैं फीस
इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स की सलाह लेने के लिए फीस चुकानी पड़ती है। किसी खास म्यूचुअल फंड हाउस से जुड़े एडवाइजर्स सलाह देने के लिए फीस नहीं लेते, लेकिन उसी फंड हाउस की स्कीम में इनवेस्ट करने की सलाह देते हैं, जिनसे वे जुड़े होते हैं। इंडिपेंडेंट फाइनेंशियल एडवाइजर्स इनवेस्टर्स से फीस लेता है। लेकिन, आप फाइनेंशियल एडवाइजर्स को जो फीस चुकाते हैं, वह उस रिटर्न के मुकाबले काफी कम होता है, जो उसके बताए स्कीम में निवेश करने पर आपको मिलता है। इसके अलावा एडवाइजर्स आपके पोर्टफोलियो को मॉनिटर करता रहता है। जरूरत पड़ने पर वह उसमें बदलाव की सलाह आपको देता है।
बैलेंस पोर्टफोलियो के साथ शुरुआत करने पर बढ़ जाता है रिटर्न
इनवेस्टमेंट लंबे समय तक जारी रहने वाला प्रोसेस है। लंबी अवधि में इनवेस्टर्स लाखों रुपये इनवेस्ट करता है। 20-25 साल में उसके लिए अच्छा वेल्थ क्रिएट होता है। अगर शुरुआत से ही इनवेस्टर्स का पोर्टफोलियो बैलेंस और उसके फाइनेंशियल गोल के हिसाब से होता है तो फिर इनवेस्टमेंट पर अचानक ब्रेक लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। हालांकि, फाइनेंशियल एडवाइजर्स बाहरी और घरेलू स्थितियों के हिसाब से पोर्टफोलियो में कुछ बदलाव की सलाह आपको दे सकता है। यह सलाह आपको कुल पोर्टफोलियो का रिटर्न बढ़ाने और रिस्क कम करने में मदद करती है।
बाहरी और घरेलू स्थितियों के हिसाब से जरूरी है पोर्टफोलियो की मॉनिटरिंग
इसे एक उदाहरण की मदद से समझ जा सकता है। अमेरिका ने पेटेंटेड दवाओं के इंपोर्ट पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया है। जेनरिक दवाइयों को इससे बाहर रखा गया है। लेकिन, कल वह जेनरिक दवाओं या एपीआई पर भी टैरिफ लगा सकते हैं। ऐसे में इनवेस्टर्स को फार्मा स्कीम में अपने निवेश पर दोबारा विचार करना पड़ेगा। यह काम इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स का है। घरेलू और बाहरी स्थितियों के हिसाब से पोर्टफोलियो को परफ्केट बनाए रखने से ज्यादा रिटर्न कमाने की संभावना बढ़ जाती है।