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म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में कुल 473 फंड मैनेजर्स में महिलाएं 10% से भी कम, जानिए क्या है इसकी वजह

अभी इंडिया में सिर्फ 42 महिला फंड मैनेजर्स हैं। एक साल पहले भी यह संख्या इतनी ही थी। पिछले एक साल में फंड मैनेजर्स की संख्या बढ़ी है। लेकिन, पुरुषों के वर्चस्व वाली इस इंडस्ट्री में महिलाओं की संख्या स्थिर बनी हुई है

अपडेटेड Mar 12, 2024 पर 6:04 PM
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फंड मैनेजर्स के टैलेंट पूल के सोर्स पारंपरिक रूप से रिसर्च एनालिस्ट्स रहे हैं। इनमें से ज्यादातर ब्रोकरेज फर्मों से आए हैं।

इंडिया में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री (Mutual Fund Industry) 50 लाख करोड़ रुपये की हो गई है। लेकिन, इसमें महिला फंड मैनेजर्स की संख्या एक साल से 42 पर अटकी हुई है। यह इंडस्ट्री में फंड मैनेजर्स की कुल संख्या का 10 फीसदी भी नहीं है। फरवरी 2024 में फंड मैनेजर्स की कुल संख्या बढ़कर 473 हो गई। यह एक साल पहले 428 थी। फंड मैनेजर्स के टैलेंट पूल के सोर्स पारंपरिक रूप से रिसर्च एनालिस्ट्स रहे हैं। इनमें से ज्यादातर ब्रोकरेज फर्मों से आए हैं। एडलवाइज एसेट मैनेजमेंट कंपनी की सीईओ राधिका गुप्ता का कहना है कि महिला फंड मैनेजर मिलना मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि ब्रोकरेज फर्मों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बहुत कम है। स्टॉक मार्केट्स और ब्रोकरेज फर्मों को हमेशा पुरुषों की दुनिया माना जाता रहा है।

परिवार के प्रति जिम्मेदारी बड़ी वजह

केनरा रोबेको म्यूचुअल फंड के हेड (इक्विटी) श्रीदत्त भानवालदर ने कहा कि अगर टैलेंट पूल में ज्यादातर पुरुष हैं तो फिर ऐसी स्थिति की कल्पना करना मुश्किल है, जिसमें कई महिला फंड मैनेजर्स होंगी। एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि बतौर रिसर्च एनालिस्ट्स जब महिलाएं करियर में ग्रोथ के साथ फंड मैनेजर बनने की शर्तें पूरी करने लायक होती हैं तब तक उनकी शादी हो जाती है। यूटीआई म्यूचुअल फंड की पूर्व सीनियर फंड मैनेजर स्वाति कुलकर्णी ने कहा, "परिवार के लिहाज से देखने पर आज भी महिलाओं पर निर्भरता बहुत ज्यादा है। बच्चे छोटे होने पर कई बार भावनात्मक रूप से यह जरूरी हो जाता है।"


कुछ ही महिलाएं लीक से हटकर चलने का साहस करती हैं

कुछ महिलाएं हालांकि ट्रेंड से हटकर चलने का साहस करती हैं। कुलकर्णी इसका सटीक उदाहरण हैं। 1996 में बच्चे के जन्म के छह महीने बाद कुलकर्णी काम पर लौट आईं। वे भाग्यशाली हैं कि उनके घर में सपोर्ट सिस्टम था। काम में उनके व्यस्त रहने पर बच्चे की देखभाल करने वाला कोई था। उन्हें अपने बॉस से भी प्रोत्साहन मिला था, जिन्होंने कहा था कि एएमसी में लोग उन्हें भविष्य के पोर्टफोलियो मैनेजर के रूप में देखते हैं।

फैमिली का सपोर्ट सिस्टम बहुत अहम

कुलकर्णी का कहना है कि सपोर्ट सिस्टम होने के बावजूद उन्हें मैटरनिटी ब्रेक के बाद फिर से दो साल रिसर्च में बिताना पड़ा। उन्होंने कहा कि ब्रेक लेने के बाद आप करियर में पीछे रह जाते हैं। कोटक एएमसी में इनवेस्टमेंट एंड स्ट्रेटेजी की हेड लक्ष्मी अय्यर बताती है कि बच्चे के जन्म के एक महीने के अंदर वे काम पर लौट आई थीं। उन्होंने कहा, "मैं महिलाओं को इतनी जल्द काम पर लौटने की सलाह नहीं दूंगी।" उन्होंने कहा कि वह ऐसा इसलिए कर सकी क्योंकि घर पर उनके बच्चे की देखभाल करने के लिए सपोर्ट सिस्टम था।

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