New Labour Codes: नए लेबर कोड्स की वजह से क्या आपकी टैक्स लायबिलिटी बढ़ जाएगी?

नई परिभाषा के हिसाब से किसी एंप्लॉयी की कुल सीटीसी का कम से कम 50 फीसदी हिस्से को 'वेज' (Wage) माना जाएगा। इसमें बेसिक पे, डियरनेस अलाउन्स और रिटेनिंग अलाउन्स शामिल होंगे। चूंकि प्रोविडेंट फंड और ग्रेच्युटी का कैलकुलेशन इस वेज के आधार पर होता है, जिससे कई एंप्लॉयीज का स्टैचुटेरी डिडक्शन बढ़ जाएगा

अपडेटेड Nov 25, 2025 पर 7:40 PM
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नए लेबर कोड्स में ओवरटाइम के नियम बदल गए हैं। नए नियम में कहा गया है कि ओवरटाइम पेमेंट रेगुलर वेज का दोगुना होगा।

सरकार ने नए चार लेबर कोड्स लागू कर दिए हैं। नए नियमों का सीधा असर टैक्सेबल इनकम, मंथली टीडीएस और पे-रोल कैलकुलेशंस पर पड़ेगा। वेज की परिभाषा और ओवरटाइम के नियम भी बदल गए हैं। इससे यह तय होगा कि किसी एंप्लॉयी की सैलरी का कितना हिस्सा टैक्स के दायरे में आएग।

वेज की परिभाषा में बदलाव

नई परिभाषा के हिसाब से किसी एंप्लॉयी की कुल सीटीसी का कम से कम 50 फीसदी हिस्से को 'वेज' (Wage) माना जाएगा। इसमें बेसिक पे, डियरनेस अलाउन्स और रिटेनिंग अलाउन्स शामिल होंगे। चूंकि प्रोविडेंट फंड और ग्रेच्युटी का कैलकुलेशन इस वेज के आधार पर होता है, जिससे कई एंप्लॉयीज का स्टैचुटेरी डिडक्शन बढ़ जाएगा। पीएफ कंट्रिब्यूशन बढ़ने का असर एंप्लॉयी की टेक-होम सैलरी पर पड़ेगा। लेकिन, इससे टैक्स-एग्जेम्प्ट सेविंग्स बढ़ जाएगी।


ओवरटाइम के नियम भी बदले

नए लेबर कोड्स में ओवरटाइम के नियम बदल गए हैं। नए नियम में कहा गया है कि ओवरटाइम पेमेंट रेगुलर वेज का दोगुना होगा। अतिरिक्त घटों तक काम करने से टैक्सेबल इनकम बढ़ जाएगी, जिससे टीडीएस भी ज्यादा कटेगा। इससे किसी महीने एंप्लॉयी की सैलरी ज्यादा तो किसी महीने कम हो सकती है। यह पीक-सीजन वर्कलोड पर निर्भर करेगा।

वेज बेस बढ़ने से डिडक्शन बढ़ेगा

क्लियरटैक्स में टैक्स एक्सपर्ट और सीए शेफाली मुंदरा ने कहा कि वेज बेस बढ़ने के चलते प्रोविडेंट फंड और ग्रेच्युटी जैसे डिडक्शंस बढ़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि शॉर्ट टर्म में टेक-होम सैलरी में कमी आ सकती है, लेकिन इस बदलाव से सेविंग्स बढ़ जाएगी जिससे लंबी अवधि में रिटायरमेंट के लिए बड़ा फंड तैयार होगा।

सैलरी स्ट्रक्चर में हो सकता है बदलाव

एक्सपर्ट्स का कहना है कि जहां तक कंप्लायंस की बात है तो कंपनियों को किसी तरह का बदलाव करने से पहले सैलरी स्ट्रक्चर पर विचार करना होगा। जेएसए एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर्स की पार्टनर प्रीत एस के मुताबिक, वेज की नई परिभाषा के बाद कंप्लायंस के लिहाज से मौजूदा सैलरी स्ट्रक्चर पर पुनर्विचार जरूरी हो जाएगा। लेकिन, एंप्लॉयर्स को किसी तरह का बदलाव करने से पहले नोटिफिकेशन जारी करना होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से डिटेल नियम आने के बाद ही नए नए नियमों का पालन होगा।

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बढ़ सकती है टैक्सेबल इनकम

यह कहा जा सकता है कि नए लेबर कोड्स की वजह से ओवरटाइम पेमेंट और टीडीएस में बदलाव से टैक्सेबल इनकम बढ़ सकती है। शॉर्ट टर्म में इसका टेक-होम सैलरी पर मामूली असर पड़ सकता है। इनकम का बड़ा हिस्सा टैक्स-एग्जेम्प्ट रिटारमेंट सेविंग्स में जाएगा। इससे लंबी अवधि में एंप्लॉयी के लिए बड़ा फंड तैयार होगा।

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