No Cost EMI: क्या होती है नो-कॉस्ट EMI, क्या सच में नहीं देना होता कोई ब्याज?
No Cost EMI: नो-कॉस्ट EMI सुनने में फ्री जैसी लगती है, लेकिन क्या सच में कोई ब्याज नहीं देना पड़ता? जानिए कैसे रिटेलर और बैंक ब्याज को एडजस्ट करते हैं और किस तरह सही ऑफर चुनकर बचत की जा सकती है।
अगर तकनीकी रूप से देखें, तो 'No Cost EMI' कभी पूरी तरह मुफ्त नहीं होता।
No Cost EMI: त्योहारी सीजन आते ही ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स और बैंक 'No Cost EMI' का खूब प्रचार करते हैं। मोबाइल, लैपटॉप, टीवी से लेकर फ्रिज और वॉशिंग मशीन तक, हर जगह यह ऑफर देखने को मिल जाता है। सुनने में तो यह बहुत लुभावना लगता है कि महंगी चीज बिना ब्याज के आसान किस्तों में मिल जाएगी। लेकिन क्या यह सच में 'फ्री' है? आइए एक्सपर्ट समझते हैं नो-कॉस्ट EMI (No Cost EMI)का पूरा खेल।
No Cost EMI कैसे काम करता है?
टैक्समैनेजर.इन के फाउंडर और सीईओ दीपक कुमार जैन का कहना है कि नो-कॉस्ट EMI का मतलब यह होता है कि जब आप कोई प्रोडक्ट किस्तों (EMI) में खरीदते हैं, तो आपको अतिरिक्त ब्याज (interest) नहीं देना पड़ता। लेकिन हकीकत में 'नो कॉस्ट' EMI पूरी तरह से फ्री नहीं होती, बल्कि इसमें ब्याज या चार्जेज को अलग तरीके से एडजस्ट किया जाता है।
कैसे काम करती है No Cost EMI?
जैन का कहना है कि नो-कॉस्ट EMI कुछ खास तरीके से काम है, जैसे कि डिस्काउंट या फिर छिपे हुए ब्याज से।
डिस्काउंट या सब्सिडी: अब मान लीजिए कि आपने ₹30,000 का स्मार्टफोन EMI पर खरीदा। इसकी EMI पर बैंक ब्याज लेगा, क्योंकि यही तो उसका बिजनेस है। सामान्य EMI पर बैंक 12% ब्याज दर से 12 महीने की EMI बनाएगा।
ऐसे में कुल लागत लगभग ₹31,800 हो जाती। लेकिन रिटेलर या ब्रांड आपको ब्याज जितना डिस्काउंट दे देता है। असल में आप कुल ₹30,000 ही चुकाते हैं। ₹1,800 के ब्याज का बोझ कंपनी उठा लेती है।
छिपा हुआ ब्याज: कई ऑफर में ब्याज सीधे नहीं दिखाया जाता। यानी आपको लगता है 'नो कॉस्ट EMI है, कोई ब्याज नहीं लगेगा'। लेकिन असल में EMI पर खरीदने पर आप वाजिब डिस्काउंट नहीं पा रहे हैं।
जैसे कि प्रोडक्ट का कैश प्राइस ₹30,000 है। डिस्काउंट के साथ वह ₹27,000 में मिलता। EMI पर वही प्रोडक्ट ₹30,000 के कुल EMI में बांट दिया गया। आपको लगता है 'नो कॉस्ट EMI' है, लेकिन आप ₹3000 की बचत गंवा रहे।
क्या वाकई मुफ्त है नो-कॉस्ट EMI?
अगर तकनीकी रूप से देखें, तो 'No Cost EMI'” कभी पूरी तरह मुफ्त नहीं होता। अगर रिटेलर सब्सिडी दे रहा है तो उसका खर्च कंपनी वहन कर रही है, जिससे उसका मार्जिन घटता है। अगर कीमत बढ़ाकर एडजस्ट किया गया है तो ग्राहक ने इनडायरेक्ट तरीके से ब्याज ही चुका दिया।
कई बार No Cost EMI के साथ अन्य डिस्काउंट ऑफर उपलब्ध नहीं होते, यानी कैशबैक या कूपन का फायदा हाथ से जा सकता है। जैसे कई बार कंपनियां ₹30,000 के प्रोडक्ट का MRP ही ₹32,000 लिख देती हैं और No Cost EMI पर बेचती हैं। ग्राहक को लगता है कि ब्याज नहीं लगा, जबकि उसने पहले से बढ़ी हुई कीमत चुका दी।
RBI का नियम क्या है?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2013 में साफ किया था कि No Cost EMI स्कीम्स में ब्याज शून्य दिखाना भ्रामक हो सकता है। इसके बाद NBFCs और बैंकों ने इन ऑफर्स को अलग तरह से डिजाइन किया। अब प्रैक्टिकली ब्याज का बोझ मैन्युफैक्चरर या रिटेलर उठाता है, ग्राहक को 'नो कॉस्ट' का अनुभव देने के लिए।
इन बातों पर जरूर दें ध्यान?
MRP और सेलिंग प्राइस चेक करें। जैसे कि क्या EMI प्रोडक्ट असली डिस्काउंट प्राइस पर मिल रहा है या बढ़ी हुई कीमत पर?
ऑफर्स की तुलना करें। कई बार सीधा डिस्काउंट ऑफर लेना No Cost EMI से सस्ता पड़ता है।
प्रोसेसिंग फीस देखें। कुछ बैंकों में प्रोसेसिंग फीस या GST अलग से लिया जाता है।
टेन्योर को जरूर समझें। जैसे कि EMI कितने महीनों में देनी है और क्या पहले भुगतान करने पर कोई पेनल्टी लगेगी?
अपने बजट पर भी ध्यान दें। किस्तों में पेमेंट आसान लगता है, लेकिन खर्च बढ़ाने का लालच भी दे सकता है।