Chakbandi: भारत को गांवों का देश कहा जाता है। आज भी देश की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी गांव में ही रहती है। उनका मूल व्यवसाय कृषि ही रहता है। देश की बढ़ती जनसंख्या और परिवार में होते बंटवारे से खेती की जमीन भी बंट जाती है। जिससे खेतों के आकार घट जाते हैं। ऐसे में एक किसान को खेती लायक जमीन एक ही जगह मुहैया कराना ही चकबंदी कहलाता है। किसानों की जरूरत को देखते हुए सरकार की ओर से यह नियम बनाया गया है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में अब तक पहले और दूसरे चरण की चकबंदी में 1,27,225 गांवों की चकबंदी हो चुकी है। 4497 गांवों में चकबंदी चल रही है।
बिहार के कई जिलों में चकबंदी का काम चल रहा है। राज्य में 70 के दशक में पहली चकबंदी शुरू हुई थी। इसमें 1992 में बंद कर दिया गया था। हालांकि, बाद में कोर्ट के आदेश पर इसे फिर से शुरू किया गया। यह बेहद धीमी गति से चल रही है।
किसानों की जब परिवार में जमीन बंट जाती है तो खेतों का आकार छोटा हो जाता है। जिससे किसानों को खेती करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही समय के साथ सरकारी जमीन पर भी अतिक्रमण की शिकायतें बढ़ने लगती हैं। इसकी वजह से सरकार चकबंदी करवाती है। हर राज्यों के अलग-अलग चकबंदी अधिनियम होते हैं। भारत में ऐच्छिक चकबन्दी की शुरुआत स्वतंत्रता से पूर्व वर्ष 1921 में पंजाब प्रान्त में सहकारी समितियों की ओर से की गई थी। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), गुजरात (Gujrat) और पश्चिम बंगाल (West Bengal) में ऐच्छिक चकबंदी कानून आज भी लागू हैं। इसमें जिन किसानों की इच्छा है वो चकबंदी करा सकते हैं। इसके तहत विवाद होने के आसार बेहद कम होते हैं।
सरकार ने किसानों को एक ही जगह खेत देना शुरू कर दिया। जिन किसानों के पास अलग-अलग जगहों पर छोटे खेत थे। उन्हें उतनी ही जमीन के बराबर एक ही जगह पर खेत दे दिए गए। हर राज्य में अलग-अलग चकबंदी कानून होते हैं। चकबंदी के तहत मिले खेतों को चक कहा जाता है।