सेबी ने म्यूचुअल फंड्स और डीमैट अकाउंट्स के नॉमिनेशन के नियमों में बदलाव किए हैं। सेबी के बोर्ड की 30 सितंबर की बैठक में यह फैसला लिया गया। अब इनवेस्टर्स को म्यूचुअल फंड्स और डीमैंट अकाउंट्स में 10 तक नॉमिनी बनाने की इजाजत दी गई है। सवाल है कि क्या 10 नॉमिनी ज्यादा नहीं हैं? एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे चीजें जटिल हो सकती हैं। कुछ एक्सपर्ट्स इसे अव्यवहारिक बता रहे हैं। उनका मानना है कि इससे चीजें आसान की जगह मुश्किल हो सकती हैं।
ज्यादा नॉमिनी की वजह से दिक्कत पैदा हो सकती है
इनहेरिटेंस नीड्स सर्विसेज के फाउंडर रजत दत्ता ने कहा कि अगर एक या मान लीजिए 10 नॉमिनी इनवेस्टर की मौत के बाद वसीयत की शर्तों को लागू करने में सहयोग नहीं करते हैं तो इससे दिक्कत पैदा हो सकती है। सेबी ने यह भी कहा है कि एमएफ अकाउंट्स या डीमैट अकाउंट्स के नॉमिनी ट्रस्टी होंगे न कि आखिरी ओनर। हाल में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह बात कही थी। सेबी के मुताबिक, मृतक के कानूनी वारिस को कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा।
अक्षम निवेशक की तरफ से नॉमिनी को फैसला लेने का अधिकार
सेबी ने नॉमिनी को अक्षम निवेशक (incapacitated Investors) की तरफ से फैसले लेने की इजाजत दे दी है। हालांकि, इसके साथ कुछ नियम और शर्तें जोड़ी गई हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह सही कदम नहीं है और यह कोर्ट की जांच में ठहर नहीं पाएगा। इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी का इंतजार है। एक नॉमिनी की भूमिका तब शुरू होती है जब निवेशक की मौत हो जाती है। निवेशक की मौत के बाद बैंक, म्यूचुअल फंड या डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट एसेट का मालिकाना हक नॉमिनी को दे देते हैं, क्योंकि बतौर ट्रस्टी उसका रोल लाभार्थी का होता है।
नए नियम से बढ़ सकते हैं फ्रॉड के मामले
एसेट्स का हक मिलने के बाद नॉमिनी से उम्मीद की जाती है कि वह सक्सेशन लॉ (उत्तराधिकार कानून) के तहत या वसीयत के मुताबिक एसेट सही वारिस तक पहुंचाएगा। दत्त का कहना है कि सेबी ने अक्षम निवेशक की तरफ से नॉमिनी को फैसले लेने का अधिकार दिया है, जिससे फ्रॉड हो सकता है। यह कदम खासकर उन भारतीयों के हित में नहीं है, जो विदेश में रहते हैं। विदेश में रहने वाले कई ऐसे भारतीय हैं, जिनके मातापिता या भाई-बहन इंडिया में रहते हैं।
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नॉमिनी का नाम जोड़ने के लिए ज्वाइंट होल्डर्स के हस्ताक्षर जरूरी नहींं
म्यूचुअल फंड के फोलियो में नॉमिनी का नाम जोड़ने या उसमें बदलाव करने के नियम अब आसान हो गए हैं। इसके लिए अब ज्वाइंट होल्डर्स के हस्ताक्षर की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे फ्रॉड का खतरा बढ़ गया है। मान लीजिए एक बुजुर्ग महिला किसी शहर में अकेली रहती है और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी केयरगिवर पर है। उसके बच्चे दूसरे शहर में रहते हैं। ऐसी स्थिति में केयरगियर बतौर नॉमिनी अपना नाम जोड़ सकता है और पैसे निकाल सकता है।