SEBI का नया प्रस्ताव: म्यूचुअल फंड्स की फीस घटेगी, देना पड़ेगा खर्च का पूरा ब्योरा; निवेशकों को होगा फायदा
SEBI ने म्यूचुअल फंड्स की फीस घटाने, ब्रोकरेज चार्जेज कम करने और खर्च का पूरा ब्योरा देने का प्रस्ताव रखा है। इससे निवेशकों को लंबी अवधि में अच्छी बचत और पारदर्शी निवेश माहौल का फायदा मिलेगा।
म्यूचुअल फंड की फीस घटने से निवेशकों को सीधा फायदा होगा।
भारतीय बाजार नियामक SEBI ने म्यूचुअल फंड्स के खर्च घटाने और फीस स्ट्रक्चर को पारदर्शी बनाने के लिए बड़ा प्रस्ताव रखा है। मंगलवार को जारी कंसल्टेशन पेपर में कहा गया कि अब फंड हाउस को निवेशकों से वसूले जाने वाले चार्जेज का पूरा ब्योरा पहले ही देना होगा।
TER में कटौती का प्रस्ताव
SEBI ने टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) यानी कुल खर्च अनुपात में कटौती का सुझाव दिया है। ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड्स में 0.15% तक और क्लोज-एंड स्कीम्स में 0.25% तक कमी की बात कही गई है। नियामक ने साफ किया कि ब्रोकरेज, टैक्स और अन्य ट्रांजैक्शन कॉस्ट को इन फीस में शामिल नहीं किया जाएगा, बल्कि इन्हें अलग से बताया जाएगा।
यह कदम SEBI के 2023 फ्रेमवर्क से अलग है, जिसमें इन सभी चार्जेज को TER में शामिल करने की कोशिश की गई थी। उस वक्त यह प्रस्ताव एसेट मैनेजर्स के विरोध के चलते विवादों में आया था। ये एसेट मैनेजर्स फिलहाल करीब ₹75.61 ट्रिलियन (लगभग $860.23 बिलियन) की निवेशक संपत्ति संभालते हैं।
ब्रोकरेज फीस में भी कटौती
SEBI ने ब्रोकरेज फीस पर भी कड़े नियम सुझाए हैं। कैश मार्केट में ब्रोकरेज अब 12 बेसिस पॉइंट से घटकर 2 बेसिस पॉइंट हो सकती है। डेरिवेटिव ट्रांजैक्शन में यह फीस 5 बेसिस पॉइंट से घटाकर 1 बेसिस पॉइंट करने का प्रस्ताव है।
परफॉर्मेंस-लिंक्ड फीस की शर्त
SEBI ने कहा कि एसेट मैनेजर्स चाहें तो परफॉर्मेंस-लिंक्ड डिफरेंशियल फीस स्ट्रक्चर अपना सकते हैं, यानी फंड के प्रदर्शन के हिसाब से फीस तय की जा सकेगी। साथ ही, फंड हाउस को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अगर वे किसी गैर-म्यूचुअल फंड बिजनेस में हैं, तो उसे अलग यूनिट में चलाया जाए और मुख्य कर्मचारियों की जिम्मेदारियां पूरी तरह अलग रहें।
फीस घटने से निवेशकों को फायदा
म्यूचुअल फंड की फीस घटने से निवेशकों को सीधा फायदा होगा। अब मान लीजिए किसी निवेशक ने ₹10 लाख का निवेश म्यूचुअल फंड में किया है। मौजूदा टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) लगभग 1.75% है। अगर SEBI का प्रस्ताव लागू होता है और इसमें 0.15% से 0.25% तक की कटौती होती है, तो सालाना बचत कुछ इस तरह होगी:
0.15% की कमी पर: ₹1500 प्रति ₹10 लाख
0.25% की कमी पर: ₹2500 प्रति ₹10 लाख
यह रकम भले छोटी लगे, लेकिन लॉन्ग टर्म में कंपाउंड होकर बड़ा फर्क पैदा करती है। अगर 15-20 साल के निवेश की बात करें, तो यह बचत ₹50,000 से ₹1 लाख तक का अतिरिक्त फायदा दे सकती है, वो भी सिर्फ खर्च घटने की वजह से।
इससे कुछ इनडायरेक्ट बेनिफिट भी होंगे। ब्रोकरेज, टैक्स और ट्रांजैक्शन कॉस्ट को अलग से दिखाना होगा। इससे निवेशक को 'कुल असली खर्च' साफ दिखाई देगा। इसका मतलब है कि छिप हुए चार्जेज की गुंजाइश लगभग खत्म हो जाएगी। और परफॉर्मेंस-लिंक्ड फीस का मतलब यह है कि फंड मैनेजर की कमाई सीधे फंड के प्रदर्शन से जुड़ जाएगी। यानी अगर निवेशक कमाएगा तो ही AMC ज्यादा कमाएगी।
एनालिस्ट्स की राय
बाजार जानकारों के मुताबिक, SEBI के इन नए प्रस्तावों से शॉर्ट टर्म में AMC (Asset Management Companies) स्टॉक्स पर दबाव आ सकता है। वजह यह है कि म्यूचुअल फंड्स की फीस घटने से उनकी कमाई (Revenue) पर असर पड़ेगा। जिन कंपनियों का बिजनेस मॉडल इन फीस पर ज्यादा निर्भर है, उनके मार्जिन कुछ समय के लिए कम हो सकते हैं।
लेकिन लॉन्ग टर्म में यह फैसला निवेशकों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा। फीस घटने और खर्च का पूरा ब्योरा मिलने से निवेश प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी (Transparent) बनेगी। निवेशकों को यह साफ दिखेगा कि उनकी कमाई में से कितना हिस्सा AMC को जा रहा है और कितना असल में उनके फंड को बढ़ा रहा है।
इसके अलावा, परफॉर्मेंस-लिंक्ड फीस मॉडल से फंड मैनेजरों को बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहन (Incentive) मिलेगा। यानी अगर फंड अच्छा रिटर्न देगा, तभी AMC को ज्यादा फीस मिलेगी। इससे पूरे सेक्टर में गवर्नेंस और निवेशकों का भरोसा दोनों मजबूत होंगे।
Disclaimer:यहां मुहैया जानकारी सिर्फ सूचना के लिए दी जा रही है। यहां बताना जरूरी है कि मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें। मनीकंट्रोल की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है।