रावण हिट थी या फ्लॉप? यह बहस शायद ही कभी खत्म होगी। लेकिन, इस फिल्म के लिए शाहरुख खान को टैक्स से जुड़ी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। लेकिन, अब इस मामले में आखिर में शाहरुख खान की जीत हुई है। इनकम टैक्स एपेलेट ट्राइब्यूनल (आईटीएटी) की भूमिका इस पूरी कानूनी लड़ाई में हीरो की रही है।
सेलिब्रिटिज से जुड़े टैक्स के मामले अक्सर सभी टैक्सपेयर्स के लिए बड़ा सबक लेकर आते हैं। फिल्म, स्पोर्ट्स या बिजनेसेज से जुड़े हाई-प्रोफाइल लोगों को अक्सर बड़े अमाउंट की वजह से ज्यादा स्क्रूटनी से गुजरना पड़ता है। इस मामले का ऐसे दो प्रावधानों के लिए बड़ा महत्व है, जो न सिर्फ सेलिब्रिटी से जुड़े हो सकते हैं बल्कि विदेशी स्रोत से इनकम हासिल करने वाले किसी टैक्सपेयर्स से जुड़े हो सकते हैं।
टैक्स अफसर ने शुरुआत में उनके रिटर्न का एसेसमेंट सेक्शन 143(3) के तहत किया। उसने DTAA के मुताबिक फॉरेन टैक्स क्रेडिट की इजाजत दे दी। लेकिन, चार साल बाद एसेसिंग अफसर (AO) ने सेक्शन 148 के तहत दोबारा इस मामले को ओपन किया। उसने टैक्स क्रेडिट की इजाजत को रद्द कर दिया। उसने बताया कि इससे सरकार के रेवेन्यू को लॉस होगा। उसके बाद यह मामला इनकम टैक्स एपेलेट ट्राइब्यूनल (ITAT) में पहुंचा। उसने खान के पक्ष में फैसला सुनाया। उसने कहा कि रिएसेसमेंट के लिए नए साक्ष्य जरूरी है।
इस मामले से ऐसे दो प्रोविजन पर फोकस जाता है, जिनके बारे में टैक्सपेयर्स को जानना जरूरी है:
1. विदेशी इनकम डबल टैक्सेशन
अगर किसी व्यक्ति को विदेश से इनकम होती है चाहे वह एंप्लॉयमेंट, इनवेस्टमेंट या इंटरनेशनल पेमेंट्स से है तो उसे इंडिया और विदेश के टैक्स के नियमों का पालन करना पड़ सकता है। इसे रोकने के लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट DTAA के तहत फॉरेन टैक्स क्रेडिट की इजाजत देता है।
फॉरेन टैक्स क्रेडिट क्लेम करने के लिए टैक्सपेयर को दोनों देशों में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना पड़ता है और फॉरेन इनकम की जानकारी देनी पड़ती है। उन्हें इंडिया में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से पहले टैक्स पेमेंट के प्रूफ के साथ फॉर्म 67 सब्मिट करना जरूरी है। दोनों टैक्स ज्यूरिडक्शंस में इनकम टैक्स की डिटेल्स मैच करनी चाहिए। फॉरेन टैक्स पेमेंट का रिकॉर्ड रखना जरूरी है, क्योंकि फॉरेन इनकम के बारे में नहीं बताने या समय पर फॉर्म 67 फाइल नहीं करने से इंडिया में टैक्स-क्रेडिट की इजाजत नहीं मिल सकती है।
2. इनकम टैक्स रिटर्न को दोबारा ओपन करना
कई टैक्सपेयर्स यह मानते हैं एक बार इनकम टैक्स रिटर्न प्रोसेस हो जाने से काम खत्म हो जाता है। हालांकि, इंडियन टैक्स नियमों के तहत इनकम टैक्स डिपार्टमेंट कुछ खास स्थितियों में टैक्स फाइलिंग को दोबारा ओपन कर सकता है। अगर साक्ष्य से ऐसा लगता है कि इनकम की जानकारी नहीं दी गई है तो डिपार्टमेंट तीन साल के अंदर टैक्स रिटर्न को दोबार एसेस कर सकता है। ऐसे मामले जिसमें नहीं बताई गई इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा है तो टैक्स रिटर्न को 10 साल तक दोबारा ओपन किया जा सकता है।
इस दिक्कत से बचने के लिए टैक्सपेयर्स को टैक्स रिटर्न, पेमेंट रिसीट और फॉरेन टैक्स डॉक्युमेंट्स का रिकॉर्ड रखना चाहिए। कम से कम तीन साल से 10 साल तक डॉक्युमेंट्स के रिकॉर्ड रखने चाहिए। उन्हें इनकम के सभी स्रोतों की जानकारी सही तरह से देनी चाहिए।
शाहरुख खान के टैक्स मामले से टैक्स कंप्लायंस, सही डॉक्युमेंटेशन और एसेसमेंट नियमों को लेकर जागरूकता के महत्व का पता चलता है। चूंकि टैक्स अथॉरिटीज डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल ट्रैकिंग का इस्तेमाल करते हैं, जिससे टैक्सपेयर्स को सही तरीके से सभी जानकारियां देनी चाहिए। उन्हें समय पर पेमेंट और रिकॉर्ड मेंटेन करना चाहिए जिससे स्क्रूटनी और पेनाल्टी से बचा जा सकेगा।