Credit Cards

Small-Cap Fund, SIP, NFO...टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट से पहले प्रोडक्ट को जान लें, नहीं तो बाद में पछताना पड़ सकता है

कई टैक्सपेयर्स वित्त वर्ष के आखिर में टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट करते हैं। जल्दबाजी में ऐसी स्कीम में वे निवेश कर बैठते हैं, जो उनके लिए सही नहीं होती हैं। इसकी एक वजह यह है कि अलग-अलग तरह की स्कीमों के नाम में एक जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है

अपडेटेड Feb 29, 2024 पर 11:53 AM
Story continues below Advertisement
यूलिप इंश्योरेंस कंपनी का प्रोडक्ट है। इसमें निवेश करने पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन मिलता है। इसका लॉक-इन पीरियड 5 साल है।

कई टैक्सपेयर्स 31 मार्च से पहले टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट (Tax-Savings Investment) करना चाहते हैं। यह लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों और म्यूचुअल फंड हाउसेज के लिए बड़ा मौका है। दोनों के कुछ प्रोडक्ट्स इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 80सी के दायरे में आते हैं। इनमें एक वित्त वर्ष में 1.5 लाख रुपये तक का निवेश कर डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। इससे टैक्सपेयर्स 46,800 रुपये का टैक्स बचा सकते हैं। लेकिन, टैक्स-सेविंग्स के लिए किसी प्रोडक्ट में निवेश से पहले उसके बारे में ठीक तरह से जान लेना जरूरी है। सिर्फ टैक्स बचाने के मकसद से किसी प्रोडक्ट में निवेश करने से आप बेहतर रिटर्न कमाने का मौका चूक सकते हैं।

इंश्योरेंस कंपनियों ने लॉन्च की स्कीम

उदाहरण के लिए LIC ने हाल में इंडेक्स प्लस प्लान लॉन्च किया है। 2020 में उसने अपना ULIP SIIP (सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट इंश्योरेंस प्लान) लॉन्च किया था। Tata AIA Life Insurance राजिंग इंडिया एनएफओ लॉन्च करने जा रही है। PNB Metlife के स्मॉलकैप फंड का एनएफओ अभी सब्सक्रिप्शन के लिए खुला है। इंश्योरेंस कंपनियों को फंड्स, नेट एसेट वैल्यू, न्यू फंड ऑफर (एनएफओ), इंडेक्स फंड्स, स्मॉल-कैप फंड्स जैसे शब्दों के इस्तेमाल के साथ प्लान लॉन्च करने पर कोई रोक नहीं है। कुछ यूलिप के विज्ञापन में यह साफ तौर पर नहीं बताया जाता है कि ये इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स हैं।


बैंक, म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस कंपनियों की स्कीम में फर्क

इंश्योरेस कंपनियों, म्यूचुअल फंड हाउसेज और बैंकों के लिए अलग-अलग रेगुलेटर हैं। बीमा कंपनियों का रेगुलेटर IRDAI है। म्यूचुअल फंड हाउसेज का रेगुलेटर SEBI है। बैंकों का रेगुलेटर RBI है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) और म्यूचुअल फंड हाउसेज का एयूम करीब एक जैसा है। बीमा कंपनियों का एयूएम जनवरी 2024 में 55 लाख करोड़ रुपये था, जबकि म्यूचुअल फंड हाउसेज का एयूएम 52.74 लाख करोड़ रुपये था।

एक जैसे नाम से कनफ्यूजन हो सकता है

बीमा कंपनियों और म्यूचुअल फंड हाउसेज के अपने प्रोडक्ट्स के नाम में एक ही जैसे शब्दों के इस्तेमाल की वजह से इनवेस्टर या टैक्सपेयर्स कन्फ्यूज हो जाते हैं। उन्हें यह नहीं पता होता कि वे यूलिप, म्यूचुअल फंड या फिक्स्ड डिपॉजिट में से किसमें निवेश कर रहे हैं। इसलिए अगर आप टैक्स-सेविंग्स के लिए निवेश करना चाहते हैं तो आपके लिए यह समझ लेना जरूरी है कि आप किस प्रोडक्ट में निवेश कर रहे हैं।

लॉक-इन पीरियड में फर्क

यूलिप इंश्योरेंस कंपनी का प्रोडक्ट है। इसमें निवेश करने पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन मिलता है। इसका लॉक-इन पीरियड 5 साल है। म्यूचुअल फंड हाउसेज की टैक्स-सेविंग्स स्कीम को ELSS कहा जाता है। इसका लॉक-इन पीरियड 3 साल है। ELSS में आप एकमुश्त निवेश कर सकते हैं या हर महीने SIP के जरिए निवेश कर सकते हैं। फिर, आप एक वित्त वर्ष में सिप के जरिए किए गए कुल निवेश पर डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं।

टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट्स

इंश्योरेंस कंपनियों के एन्डॉमेंट प्रोडक्ट्स पर भी डिडक्शन का लाभ मिलता है। लेकिन, रिटर्न के लिहाज से यह म्यूचुअल फंड की ईएलएसएस के मुकाबले पिछड़ जाता है। उधर, बैंकों के टैक्स-सेविंग्स फिक्स्ड डिपॉजिट पर भी टैक्स छूट मिलती है। इसका लॉक-इन पीरियड 5 साल है। बैंक टैक्स-सेविंग्स एफडी में निवेश करने से पहले आप उसके इंटरेस्ट रेट के बारे में जान सकते हैं। ईएलएसएस और यूलिप में रिटर्न के बारे में पहले से पता नहीं होता।

यह भी पढ़ें: NPS की मदद से आप बचा सकते हैं काफी ज्यादा टैक्स, यहां समझिए पूरा मैथ्स

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।