ITR फाइल करने के लिए जरूरी है टैक्सेबल इनकम की जानकारी, जानिए कैसे कैलकुलेट करेंगे Taxable Income
टैक्सबेल इनकम (Taxable Income) का मतलब आपकी इनकम के उस हिस्से से है, जिस पर आपके लिए टैक्स चुकाना है जरूरी है। जो लोग नौकरी में हैं, उनके लिए अपनी टैक्सेबल इनकम को जानना आसान है। आइए जानते हैं टैक्सेबल इनकम का पता लगाने का तरीका क्या है
वित्त वर्ष 2021-22 का इनकम टैक्स रिटर्न आपको 31 जुलाई तक फाइल करना होगा। इसके बाद फाइल करने पर आपको जुर्माना देना होगा।
Income Tax Return (ITR) फाइल करने की अंतिम तारीख नजदीक आ रही है। वित्त वर्ष 2021-22 का इनकम टैक्स रिटर्न आपको 31 जुलाई तक फाइल करना होगा। इसके बाद फाइल करने पर आपको जुर्माना देना होगा। अब इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना मुश्किल नहीं है। रिटर्न फॉर्म में कई जानकारियां पहले से भरी (Pre-Filled) होती हैं। आप खुद आईटीआर फाइल कर सकते हैं। लेकिन, इसके लिए आपको कुछ होमवर्क करना होगा। इनमें सबसे पहला है अपने टैक्सेबल इनकम को जानना है।
टैक्सबेल इनकम (Taxable Income) का मतलब आपकी इनकम के उस हिस्से से है, जिस पर आपके लिए टैक्स चुकाना है जरूरी है। जो लोग नौकरी में हैं, उनके लिए अपनी टैक्सेबल इनकम को जानना आसान है। आइए जानते हैं टैक्सेबल इनकम का पता लगाने का तरीका क्या है।
इनकम टैक्स के नियम के मुताबिक इनकम के पांच स्रोत निर्धारित हैं। इनमें 1. इनकम फ्रॉम सैलरी (Income from Salary), 2. इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी (Income From house Property), 3. इनकम फ्रॉम कैपिटल गेंस (Income from Capital gains), 4. इनकम फ्रॉम बिजनेस एंड प्रोफेशन (Income from business and profession) और 5. इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज (Income from other Sources) शामिल हैं।
Income From Salary में आपको सैलरी के रूप में मिलने वाली इनकम आती है। इसका ब्योरा फॉर्म 16 में होता है। जिस कंपनी में आप नौकरी करती है वह आपको हर साल फॉर्म 16 जारी करती है। कंपनियों के लिए 15 जून तक अपने कर्मचारियों को फॉर्म 16 जारी करना जरूरी है। इसमें पिछले वित्त वर्ष में आपको मिली सैलरी, हर तिमाही उस पर काटे गए TDS, टैक्स छूट और डिडक्शंस का दावा शामिल होता है।
हाउस रेंट अलाउन्स और लीव ट्रेवल कनसेशन, 80सी के तहत किया गया निवेश, 80डी के तहत मेडीक्लेम प्रीमियम पेमेंट आदि टैक्स छूट और डिक्शंस के तहत आते हैं। इनके अलावा नौकरी करने वाले लोगों को एक वित्त वर्ष में 50,000 रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन भी मिलता है।
इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉप्रटी जानने के लिए भी नियम और शर्तें तय हैं। इसके लिए प्रॉपर्टी को तीन हिस्सों में बांटा गया हैं। इनमें सेल्फ ऑक्युपायड प्रॉपर्टी, रेंटल प्रॉपर्टी और डीम्ड टू बी लेट आउट शामिल हैं। सेल्फ-ऑक्युपायड प्रॉपर्टी का मतलब ऐसे प्रॉपर्टी (घर) से हैं, जिसका इस्तेमाल आप खुद रहने के लिए करते हैं। इनकम टैक्स के नए नियम के मुताबिक, दो प्रॉप्रटी को सेल्फ-ऑक्युपायड माना जा सकता है। अगर आपकी तीसरी प्रॉप्रटी है तो उसे आपने किराया पर दिया हो या नहीं, उसे किराया पर दिया गया (Deemed to be let Out) माना जाएगा। फिर उससे होने वाली इनकम (रेंट) आपकी इनकम मानी जाएगी।
इनकम फ्रॉम कैपिटल गेंस के तहत खास तरह की इनकम आती है। इनमें प्रॉपर्टी, म्यूचुअल फंड यूनिट्स, शेयरों की बिक्री से होने वाला मुनाफा आता है। यह दो तरह का होता है-शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस। आप एसेट खरीदने के कितने समय बाद बेचते हैं, उस पर डिपेंड करता है कि उससे होने वाला मुनाफा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस होगा या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस होगा। अलग-अलग संपत्ति के लिए अलग-अलग अवधि तय है।
इनकम फ्रॉम बिजनेस और प्रोफेशन उन लोगों के लिए है, जो सेल्फ-एंप्लॉयड होते हैं। इसके तहत वकील, सीए, फ्रीलांस राइटर्स आदि आते हैं। ऐसे लोगों को अपनी इनकम 'Income From business and Profession' के तहत बतानी होती है।
आखिर में आता है इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज। जो इनकम उपर्युक्त चारों इनकम के तहत नहीं आती है, उसे इनकम फ्रॉ अदर सोर्सेज के तहत दिखाया जाता है। इसमें बैंक के सेविंग्स अकाउंट्स, एफडी अकाउंट, इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से मिलने वाली पेंशन, शेयरों से मिला डिविडेंड आदि आते हैं।
ऊपर बताए गए सभी स्रोतों से होने वाली इनकम को जोड़ने के बाद आपको अपनी ग्रॉस टैक्सेबल इनकम मिल जाएगी। इसमें से आपको सेक्शन 80सी, सेक्शन 80डी आदि के तहत मिलने वाले डिडक्शन को घटाना होगा। फिर, जो अमाउंट आएगा वह आपकी टैक्सेबल इनकम होगी।