भारतीय मिडिल क्लास का सबसे बड़ा सपना होता है अपना खुद का घर खरीदना। लेकिन अब यही सपना कई परिवारों के लिए डरावना सपना बन गया है। दरअसल, ‘नो ईएमआई टिल पजेशन’ जैसी स्कीमें असल में होमबायर्स के लिए जाल साबित हो रही हैं। वह घर के किराये के साथ होमलोन EMI भी चुका रहे हैं लेकिन घर नहीं मिल रहा है। चार्टर्ड अकाउंटेंट मीनल गोयल ने हाल ही में एक लिंक्डइन पोस्ट में दावा किया कि देशभर में 4.3 लाख से ज्यादा होमबायर्स ऐसी स्थिति में फंसे हैं जहां वे भारी-भरकम EMI चुका रहे हैं, लेकिन उनका घर अब तक बना ही नहीं है। गोयल ने अपनी पोस्ट का टाइटल रखा अपना सपना खरीदना अब एक सपना नहीं, बुरा सपना बना गया है।
इन स्कीमों में खरीदार को सिर्फ 10% रकम एडवांस देना होता है। बाकी का लगभग 80% बैंक से लोन के रूप में बिल्डर को मिल जाता है। बिल्डर वादा करता है कि 2-3 साल तक EMI वही भरेगा। लेकिन जेसे ही बिल्डर पेमेंट करना बंद करता है, पूरा बोझ खरीदार पर आ जाता है। गोयल ने एक उदाहरण देते हुए लिखा कि उनकी एक दोस्त हर महीने 45,000 रुपये किराया और 32,000 रुपये EMI भर रही है। उस घर के लिए जो शायद कभी पूरा ही न हो।
कहां है सबसे ज्यादा परेशानी?
इंडस्ट्री डाटा के मुताबिक अभी 42 शहरों में 5.08 लाख हाउसिंग यूनिट्स अटकी पड़ी हैं। यह 2018 से अब तक 9% की बढ़ोतरी है। मुंबई, नोएडा, गुरुग्राम, ठाणे और ग्रेटर नोएडा जैसे शहर इस संकट के सबसे बड़े गढ़ हैं। सिर्फ इन शहरों में ही 1,636 प्रोजेक्ट्स और 4.3 लाख घर अधर में लटके हैं। कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने स्कूल जाने वाले बच्चों के समय फ्लैट बुक किया था, और अब बच्चे कॉलेज पहुंच गए लेकिन घर अब भी सिर्फ कंक्रीट का ढांचा बना है।
खरीदार ही क्यों फंस जाते हैं?
सबसे बड़ा झटका यह है कि लोन खरीदार के नाम पर होता है, बिल्डर के नाम पर नहीं। यानी अगर बिल्डर ने EMI देना बंद किया तो भी बैंक खरीदार से ही वसूली करता है। EMI मिस हुई तो खरीदार की क्रेडिट हिस्ट्री खराब हो जाती है।
गोयल के मुताबिक यह सिर्फ रियल एस्टेट संकट नहीं बल्कि प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग और रेगुलेशन की असफलता है। ऐसी स्कीमों को सुधारने की सबसे ज्यादा जरूरत है। सरकार ने जरूर SWAMIH फंड के जरिए 50,000 यूनिट्स पूरे कराए हैं और 2025 तक 40,000 और पूरे करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह कुल बैकलॉग का अभी भी 20% से कम है। यानी बाकी लाखों खरीदार अब भी अनिश्चितता में हैं। गोयल ने लिखा कि खरीदारों को कोई मुआवजा नहीं, कोई कानूनी राहत नहीं और न ही कोई नियामक उन्हें सुरक्षा दे रहा है। यह समस्या सिर्फ घर की नहीं, पूरे सिस्टम की है।