कभी कंधों पर उठाकर ले जाए जाते थे, व्हीलचेयर पर चलने वाले अजय गुप्ता आज 1100 'बचपन' स्कूलों का है करोबार

अजय गुप्ता, जिनके पैर पोलियो के कारण बेकार हो गए थे, कभी दूसरों के कंधों पर बैठकर स्कूल जाते थे। लेकिन आज, उन्होंने न केवल अपनी चुनौतियों को पार किया, बल्कि देशभर में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। गुप्ता आज 1,100 से अधिक 'बचपन' स्कूलों के फाउंडर हैं, जहां हजारों बच्चों को शिक्षा मिल रही है

अपडेटेड Aug 02, 2024 पर 6:20 PM
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अजय गुप्ता, जिनके पैर पोलियो के कारण बेकार हो गए थे, कभी दूसरों के कंधों पर बैठकर स्कूल जाते थे।

अजय गुप्ता, जिनके पैर पोलियो के कारण बेकार हो गए थे, कभी दूसरों के कंधों पर बैठकर स्कूल जाते थे। लेकिन आज, उन्होंने न केवल अपनी चुनौतियों को पार किया, बल्कि देशभर में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। गुप्ता आज 1,100 से अधिक 'बचपन' स्कूलों के फाउंडर हैं, जहां हजारों बच्चों को शिक्षा मिल रही है।

गुप्ता के बचपन की कहानी संघर्ष से भरी है। 1970 के दशक में जब वे केवल नौ महीने के थे, तो उन्हें पोलियो हो गया। पोलियो के कारण उनके कमर के नीचे के हिस्से काम करना बंद कर दिया। परिवार ने इलाज का हर संभव प्रयास किया, लेकिन उस समय के चिकित्सा संसाधनों की अपना लिमिट थी।

लेकिन गुप्ता के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने गुप्ता के दादा की मिठाई की दुकान पर आए। उन्होंने उनकी स्थिति के बारे में जानकर परिवार को यह समझाया कि शिक्षा उनके लिए संभव है। शिक्षक ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही गुप्ता के शरीर का एक हिस्सा कमजोर हो गया है, लेकिन उनका मस्तिष्क पूरी तरह सक्षम है। इस प्रेरणा ने गुप्ता को शिक्षा की पहुंच को नए सिरे से परिभाषित करने के मिशन पर निकलने के लिए प्रेरित किया। उनके 'बचपन प्ले स्कूल' ने न केवल शिक्षा दी, बल्कि अनगिनत परिवारों को आशा भी दी, यह साबित करते हुए कि संकल्प और विश्वास से शारीरिक सीमाओं को भी पार किया जा सकता है।


अजय गुप्ता आज प्रेरणा के प्रतीक हैं। उन्होंने साबित किया है कि संकल्प और पर्सनल परेशानियों को बदलाव में बदला जा सकता है। गुप्ता ने बताया कि कैसे उनके परिवार ने शिक्षक की सलाह मानी और उन्हें दूसरों के कंधों पर बैठाकर स्कूल भेजा। तीसरी कक्षा से अपनी शिक्षा की शुरुआत करते हुए, गुप्ता ने हर चुनौती का सामना किया और अपनी पढ़ाई जारी रखी। बाद में, उन्होंने व्हीलचेयर की मदद से स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। अपने जीवन को याद करते हुए गुप्ता ने स्वीकार किया कि उन्होंने अनेक बाधाओं का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने दृढ़ संकल्प को बनाए रखा।

शारीरिक चुनौती का सामना करने के बावजूद गुप्ता ने कारोबार में कदम रखना और अपने सपनों को पंख दिए। शुरुआत में उन्हें परिवार से थोड़ी हिचकिचाहट का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में उन्हें उनका समर्थन मिला। उनकी पहली हार्डवेयर कारोबार की कोशिश असफल रही, जिसके बाद उन्होंने कंप्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने एक सफल कंप्यूटर कोचिंग संस्थान की स्थापना की, जिसकी शाखाएं कई शहरों में फैली हुई थीं लेकिन बाद में इस कारोबार को बंद कर दिया।

'बचपन' की स्थापना तब हुई जब गुप्ता अपनी बेटी के लिए एक प्ले स्कूल की तलाश कर रहे थे और उन्हें लगा कि इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है। इस कमी को पूरा करने के उद्देश्य से, गुप्ता ने 2004 में 'SK एजुकेशंस' की शुरुआत की, जिसने 'बचपन' स्कूल की नींव रखी। आज, देशभर में 1,100 से अधिक 'बचपन' प्ले स्कूल फ्रैंचाइजी हैं, जो हजारों बच्चों की शिक्षा का आधार बन चुके हैं।

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First Published: Aug 02, 2024 5:53 PM

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