Petrol Diesel Price: क्या महंगा होने वाले हैं पेट्रोल-डीजल? कच्चे तेल पर ट्रंप की चेतावनी से मची हलचल
Petrol Diesel Price: कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। उस पर ट्रंप की रूस पर नई चेतावनी ने संकट और बढ़ा दिया है। एक्सपर्ट से जानिए क्या पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ सकते हैं।
Petrol Diesel Price: भारत 40 से ज्यादा देशों से कच्चा तेल खरीदता है, इसलिए सप्लाई से ज्यादा चिंता कीमतें बढ़ने की हैं।
Petrol Diesel Price: अमेरिका और रूस के बीच तनाव का असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी दिख रहा है। एक्सपर्ट का मानना है कि इससे ब्रेंट क्रूड की कीमतें 2025 के अंत तक $80–82 प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच सकती हैं। शॉर्ट टर्म ट्रेंड भी कीमतों में तेजी के संकेत दे रहे हैं। इससे यह भी चिंता उठ रहा है कि उपभोक्ताओं को महंगे पेट्रोल-डीजल की मार भी झेलनी पड़ सकती है।
अमेरिका का सख्त रूख बढ़ाएगा दाम
Ventura में कमोडिटीज और CRM प्रमुख एन एस रामास्वामी ने समाचार एजेंसी ANI को बताया कि अक्टूबर 2025 डिलीवरी वाला ब्रेंट क्रूड $72.07 से चढ़कर $76 के करीब पहुंच गया है और इसका मजबूत सपोर्ट $69 पर है। उनका अनुमान है कि यह साल के अंत तक $80–82 के दायरे में रह सकता है।
उन्होंने कहा, "अगर अमेरिका ने रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाए, तो वैश्विक तेल आपूर्ति बाधित हो सकती है। इससे कीमतों में तेज उछाल आएगा।"
ट्रंप की 12 दिन की डेडलाइन से बढ़ी अनिश्चितता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को 10–12 दिन की डेडलाइन दी है कि वह यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई बंद करे। ऐसा न करने पर, रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100% सेकेंडरी टैरिफ लगाए जा सकते हैं।
एनर्जी एनालिस्ट नरेंद्र तनेजा ने ANI को बताया, "अगर रूसी तेल बाजार से हटता है, तो ब्रेंट की कीमत $100–$120 प्रति बैरल तक जा सकती है। भारत जैसे देश, जो रूसी तेल पर निर्भर हैं, उन पर बड़ा असर पड़ेगा।"
भारत के लिए सप्लाई की नहीं, कीमत की चुनौती
भारत को फौरन कच्चे तेल की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि हम 40 से ज्यादा देशों से तेल खरीदते हैं। लेकिन रिटेल स्तर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतें नियंत्रित करना बड़ी चुनौती बन सकती है। अगर कच्चे तेल की कीमतें हद से ज्यादा बढ़ीं, तो इसका भार उपभोक्ताओं पर भी डाला जा सकता है।
तनेजा ने जोड़ा, "तेल की आपूर्ति हम मैनेज कर लेंगे, लेकिन उपभोक्ता मूल्य सबसे कठिन पहलू होगा।"
क्यों मंडरा रहा है सप्लाई शॉक का खतरा
तेल उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता पहले से ही सीमित है। अगर रूस जैसे बड़े उत्पादक की सप्लाई बाधित होती है, तो वैश्विक स्तर पर भारी डिफिसिट पैदा हो सकता है। हालांकि सऊदी अरब या OPEC+ हस्तक्षेप कर सकते हैं, लेकिन उत्पादन बढ़ाने में समय और संसाधनों की कमी बाधा बन सकती है।
एक्सपर्ट के मुताबिक, ट्रंप घरेलू राजनीति के चलते तेल कीमतें नीचे लाना चाहते हैं, लेकिन अमेरिका खुद जल्दी उत्पादन नहीं बढ़ा सकता।
ब्याज दर और इन्वेंटरी डेटा से भी बाजार पर नजर
तेल बाजार की अस्थिरता को अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति और अमेरिका के तेल भंडार के आंकड़े भी प्रभावित कर रहे हैं। मजबूत डॉलर ने अब तक कीमतों पर थोड़ी लगाम लगाई है, लेकिन यह भू-राजनीतिक जोखिम को पूरी तरह रोक नहीं सकता।
कुछ राहत, लेकिन खतरे अब भी कायम
हालिया अमेरिका–यूरोपियन यूनियन ट्रेड डील और अमेरिका–चीन में बढ़ती सहमति से थोड़ी स्थिरता जरूर आई है। लेकिन, अगर रूसी सप्लाई खत्म होती है और OPEC+ उत्पादन नहीं बढ़ाता, तो दुनिया को भारी तेल संकट का सामना करना पड़ सकता है। उस स्थिति में कीमतें मौजूदा अनुमानों से कहीं ऊपर जा सकती हैं।