Badrinath Temple: शंख न बजाने की परंपरा बद्रीनाथ में क्यों है खास? जानिए क्‍या है इसका रहस्‍य

Badrinath Temple: बदरीनाथ मंदिर में भगवान बदरीनाथ की स्वयम्भू शालिग्राम मूर्ति की पूजा की जाती है। हालांकि सनातन धर्म में शंख बजाना शुभ माना जाता है, फिर भी यहां शंख नहीं बजाया जाता। इसके पीछे पौराणिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक वजहें भी हैं, जिन्हें जानना बेहद दिलचस्प और रहस्यमय है

अपडेटेड May 05, 2025 पर 9:32 AM
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Badrinath Temple: बदरीनाथ धाम चारधामों में से एक प्राचीन मंदिर है।

बद्रीनाथ धाम को भगवान नारायण का तपोस्थली माना जाता है और ये उत्तराखंड के चार धाम में से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ये रहस्यों से भी भरा हुआ है। इनमें से एक रहस्य है यहां पूजा के दौरान शंख न बजाने की परंपरा। हालांकि भगवान विष्णु की प्रिय वस्तुओं में शंख का नाम आता है, फिर भी इस पवित्र स्थान पर शंख बजाना मना है। ये एक दिलचस्प और अनोखी परंपरा है, जिसके पीछे कई पौराणिक और वैज्ञानिक कारण जुड़े हुए हैं।

कई लोग इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं को मानते हैं, तो कुछ इसे पर्यावरण और प्राकृतिक प्रभावों से भी जोड़ते हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि क्यों बदरीनाथ में शंख न बजाने की परंपरा है, और इसके पीछे क्या पौराणिक और वैज्ञानिक कारण हैं।

शंख बजाने से होती थी साधना की बाधा


बद्रीनाथ  क्षेत्र अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है, जिसे भगवान नारायण का तपोस्‍थली माना जाता है। एक पुरानी मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्‍णु ने यहां तपस्या की थी, तो शंख बजाने से उस ध्वनि से देवताओं की साधना में विघ्न पड़ सकता था। इसीलिए, इस स्थान को शांत क्षेत्र माना गया और शंख बजाना निषेध कर दिया गया।

नाग वंश की मान्यता

एक और कथा के अनुसार, बद्रीनाथ  के आस-पास नागों का वास माना जाता है। शंख की ध्वनि नागों के लिए कष्टकारी मानी जाती है। ये माना जाता है कि शंख बजाने से नाग क्रोधित हो सकते हैं, और इससे प्राकृतिक आपदाएं या क्षेत्र में अन्य बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस कारण से यहां शंख बजाने पर प्रतिबंध है।

शंख की आवाज और बर्फ का असर

बद्रीनाथ क्षेत्र में ठंडी बर्फबारी होती है, और बर्फ के मौसम में शंख की आवाज पहाड़ों से टकराती है, जिससे प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। ये प्रतिध्वनि बर्फ में दरार ला सकती है और बर्फीले तूफान का कारण बन सकती है। यही वजह है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यहां शंख बजाना निषेध किया गया है।

लक्ष्मी जी का ध्यान और शंख का उपयोग

एक शास्त्रिक कथा के अनुसार, एक बार लक्ष्मी जी बद्रीनाथ के तुलसी भवन में ध्यान कर रही थीं। इसी समय भगवान विष्‍णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस को मारा था। हिन्दू धर्म में शंख की आवाज विजय का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन विष्णु जी लक्ष्मी जी का ध्यान भंग नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया।

राक्षसों से बचने के लिए शंख का रहस्य

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, अगस्त्य मुनि केदारनाथ में राक्षसों से युद्ध कर रहे थे। दो राक्षस, अतापी और वतापी, वहां से भाग गए थे। वतापी ने शंख का सहारा लिया और उसमें छिप गया। ये माना जाता है कि यदि उस समय कोई शंख बजाता, तो वो राक्षस शंख से बाहर निकलकर भाग जाता। इस कारण से भी बदरीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।

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First Published: May 05, 2025 9:00 AM

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