चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जो शक्ति और साहस की देवी मानी जाती हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार, उनका स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और ममतामयी है, जो अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करती हैं। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र स्थित होने के कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। उनका शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है और उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और निर्भयता का प्रतीक है। मां के दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं, जो बुराई के विनाश का संकेत देते हैं।
मान्यता है कि उनकी पूजा से मणिपुर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। मां चंद्रघंटा की आराधना करने से भय और नकारात्मकता का नाश होता है तथा जीवन में शांति और सफलता का संचार होता है।
देवी के दस हाथ होते हैं, जिनमें कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल, गदा और अन्य शस्त्र धारण किए हुए हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्नजड़ित मुकुट सुशोभित रहता है। मां चंद्रघंटा युद्ध मुद्रा में विराजमान रहती हैं और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उनकी पूजा से भौतिक सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ समाज में प्रभाव भी बढ़ता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मां चंद्रघंटा का ध्यान और स्मरण करें।
देवी की मूर्ति या चित्र को लाल या पीले वस्त्र पर स्थापित करें।
मां को कुमकुम और अक्षत अर्पित करें।
विधि-विधान से पूजा करें और मां को पीला रंग अर्पित करें।
मां चंद्रघंटा को खीर और दूध से बने प्रसाद का भोग लगाएं।
पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मां चंद्रघंटा की आरती करें।
मां चंद्रघंटा को प्रिय भोग
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को खीर का भोग अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है। खासकर केसर युक्त खीर मां को अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा, लौंग, इलायची, पंचमेवा और दूध से बनी मिठाइयां भी मां को अर्पित की जा सकती हैं। भोग में मिश्री और पेड़े भी शामिल करना शुभ माना जाता है।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः॥
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढ़ा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
रंग, गदा, त्रिशूल, चापचर, पदम, कमण्डलु, माला वराभीतकराम्॥