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Chaitra Navratri 2025: चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, जानें विधि मंत्र और भोग

Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप, कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है। उनकी पूजा से सभी रोग और कष्ट समाप्त होते हैं, और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी कहा जाता है, क्योंकि उनके आठ भुजाएं होती हैं। जानिए उनकी पूजा विधि, मंत्र, भोग और आरती

MoneyControl Newsअपडेटेड Apr 02, 2025 पर 7:34 AM
Chaitra Navratri 2025: चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, जानें विधि मंत्र और भोग
Chaitra Navratri 2025: मां कुष्मांडा की पूजा से सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं

चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप, मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। यह दिन शक्ति, समृद्धि, और शांति का प्रतीक माना जाता है। मां कुष्मांडा का रूप अत्यंत दिव्य और अलौकिक है। माना जाता है कि मां की मुस्कान से ही संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई और यही कारण है कि उन्हें "कूष्मांडा" कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘कुम्हड़े की देवी’, क्योंकि उन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। मां कुष्मांडा की आठ भुजाओं में दिव्य अस्त्र और शस्त्र होते हैं, जो हर प्रकार की बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने में सक्षम हैं। इस दिन उनकी पूजा से ना केवल शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि का वास भी होता है।

इस दिन पूजा के दौरान भक्त पीले वस्त्र, फूल, फल, मिठाई और नैवेद्य अर्पित करते हैं, और उनके मंत्रों का जाप करते हैं। विशेष रूप से छात्रों को मां की पूजा करने से बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि होती है। पूरे दिन के पूजा-पाठ के बाद, भक्त मां की आरती करते हैं, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और हर कार्य में सफलता मिलती है।

मां कूष्मांडा का स्वरूप और महिमा

मां कूष्मांडा का रूप दिव्य और अद्भुत माना जाता है। वे सिंह पर सवार होती हैं और आठ भुजाओं में विभिन्न दिव्य अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। इनकी मंद मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति मानी जाती है। उनका नाम 'कूष्मांडा' उनके इस स्वरूप से जुड़ा है, जिसका अर्थ है कुम्हड़ा (जो बलि में प्रिय है)।

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