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Chandra Grahan 2025: देश के इन 5 मंदिरों में नहीं मान्य होता ग्रहण का सूतक काल, जानिए इनके बारे में

Chandra Grahan 2025: ग्रहण के दौरान धार्मिक और मांग्लिक कार्य नहीं होते हैं। इसलिए इस दौरन मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन देश में 5 ऐसे मंदिर है, जिनमें सूतक काल मान्य नहीं होता है और ग्रहण ये कुछ समय पहले मंदिर के दरवाजे बंद किए जाते हैं। आइए इनके बारे में जानें

अपडेटेड Sep 05, 2025 पर 8:00 AM
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7 सितंबर को लग रहे ग्रहण के दौरान देश के इन पांच प्रमुख मंदिरों में चलता रहेगा पूजा-पाठ।

Chandra Grahan 2025: 7 सितंबर की रात को पूर्ण चंद्र ग्रहण लग रहा है। ये साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण होगा, जो भारत में भी नजर आएगा। भाद्रपद मास की पूर्णिमा को लगने वाले चंद्र ग्रहण पर ब्लड मून का नजारा दिखेगा। ग्रहण काल के दौरान सभी तरह की पूजा-पाठ और मांग्लिक कार्यों पर रोक रहती है। इसलिए इस दौरान मंदिरों दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। देश के लगभग सभी मंदिरों को सूतक काल शुरू होने के साथ ही बंद कर दिया जाता है। इस अवधि में मंदिर का गर्भगृह में प्रवेश भी वर्जित रहता है। सूतक काल खत्म होने के बाद मंदिर को शुद्धि और हवन के बाद भक्तों के दर्शन कि लिए फिर से खोल दिया जाता है। आमतौर से ये नियम सभी मंदिरों पर लागू होता है। लेकिन देश के ये 5 मंदिर सूतक काल में खुले रहते हैं, बल्कि इनमें नियमित पूजा-पाठ भी चलता रहता है। आइए जानें इसके बारे में

काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की सूचना के मुताबिक मंदिर की परंपरा के अनुसार चंद्र या फिर सूर्य ग्रहण के स्पर्श के लगभग ढाई घंटे पहले मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं। काशी विश्वनाथ तीनों लोकों, देवी-देवताओं, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, सुर और असुरों के स्वामी हैं। इसलिए उन पर सूतक का प्रभाव नहीं होता है। ग्रहण वाले दिन बाबा विश्वनाथ की आरती समय से पहले संपन्न कराई जाएगी। संध्या आरती शाम 4:00 से 5:00 बजे तक होगी। शृंगार भोग आरती शाम 5:30 से 6:30 बजे और शयन आरती शाम 7:00 से 7:30 बजे तक कराई जाएगी। शयन आरती के उपरांत मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे।

विष्णुपद मंदिर, गया

बिहार के गया स्थित विष्णुपद मंदिर एक पिंडदान स्थल भी है। इस मंदिर के कपाट सूतक काल में बंद नहीं किए जाते। विष्णुपद मंदिर में ग्रहण के समय पिंडदान करना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय भी इस मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। ग्रहण के समय इसकी मान्यता और भी बढ़ जाती है। बहुत से श्रद्धालु इस अवधि में अपने पितरों का पिंडदान कर विष्णु चरण पर अर्पित करने के लिए यहां आते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन


माना जाता है कि मध्य प्रदेश के इस मंदिर में स्वयं महाकाल विराजते हैं। ये मंदिर भी ग्रहण के समय खुला रहता है। ग्रहण काल में मंदिर में पूजा-पाठ और आरती के समय में अंतर रहता है। ग्रहण के दौरान आरती का समय बदल दिया जाता है। भक्तों के दर्शन करने पर किसी भी तरह की रोक नहीं लगाई जाती है। न मंदिर के कपाट बंद होते हैं।

लक्ष्मीनाथ मंदिर, बीकानेर

राजस्थान का यह मंदिर सूतक काल में भी खुला रहता है। इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा यहां लोकप्रिय है। बहुत समय पहले ग्रहण का सूतक लगने के बाद पुजारी ने मंदिर के कपाट बंद कर दिए। संयोग से उस दिन भगवान को न भोग लगा था और न कोई पूजा हुई थी। माना जाता है कि श्री लक्ष्मीनाथ उस दिन एक बालक का रूप धर कर मंदिर के निकट हलवाई की दुकान पर आए और उसे एक पाजेब देकर कहा कि मुझे बहुत भूख लगी है। हलवाई ने पाजेब लेकर बालक को खाने के लिए दे दिया। लेकिन उसके अगले दिन मंदिर से भगवान के पदचिह्न गायब हो गए थे। तब से लेकर अब तक किसी भी ग्रहण पर मंदिर में न पूजा-पाठ बंद होता है और न यहां के कपाट बंद होते हैं।

तिरुवरप्पु मंदिर, कोट्टायम

केरल के कोट्टायम जिले का तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर भी ग्रहण के समय खुला रहता है। यहां माना जाता है कि ग्रहण के समय मंदिर बंद करने पर भगवान कृष्ण की मूर्ति पतली हो जाती है। इसलिए यहां ग्रहण के समय भी नियम से पूजा-पाठ चलता रहता है। बहुत समय पहले एक बार जब ग्रहण के समय मंदिर बंद कर दिया गया था, तो भगवान की मूर्ति पतली हो गई थी और उसकी कमर-पट्टि नीचे खिसक गई थी। लोगों का मानना है कि भगवान भूख की वजह से पतले हो जाते हैं।

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