Chhath Puja 2025: हर पूर्वांचली के दिल में बसता है आस्था में समानता और विश्वास का पर्व छठ
Chhath Puja 2025: यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला यह पर्व पूर्वांचल समाज के लिए श्रद्धा, विश्वास और समानता का प्रतीक है। आइए जानें चार दिनों तक चलने वाला ये पर्व हमें क्या संदेश देता है।
यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है।
Chhath Puja 2025: लोक आस्था का महापर्व सूर्य षष्ठी या छठ पूजा मंगलवार, 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के साथ सम्पन्न हो गया। अब बचा है तो बस इस महाअनुष्ठान के प्रति विश्वास, लोगों की आस्था और अगले साल फिर आने वाली छठ पूजा का इंतजार। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा साल में दो बार मनाई जाती है। एक बार कार्तिक मास में दीपावली के बाद और फिर चैत्र मास में होली के बाद, जिसे चैती छठ भी कहा जाता है।
कब और कैसे शुरू हुई छठ पूजा?
ये ठीक-ठीक बता पाना शायद संभव न हो कि छठ पूजा मनाने की परंपरा कब से चली आ रही है। कुछ लोगों का मानना है कि मनुष्य ने जब से प्रकृति की पूजा शुरू की, छठ पूजा का आरंभ भी वहीं से हुआ। वही, कुछ और लोगों के मुताबिक ऋग वेद में सूर्य पूजा का विधान बताया गया है। बहुत लोग इसकी शुरुआत रामायण और महाभारत काल से भी मानते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री राम और माता सीता ने लंका से विजयी हो कर लौटने के बाद सूर्य भगवान के लिए व्रत और यज्ञ किया था। वहीं, द्वापर युग में जब पांडव वनवास में थे, उस समय कुछ ऋषि-मुनी उनकी कुटिया में पधारे थे। इस समय द्रौपदी को अहसास हुआ कि उनके पास ऋषियों के लिए कुछ नहीं है। तब उन्होंने ऋषि धूम्य से मदद मांगी। ऋषि धूम्य ने उन्हें सूर्य देव के लिए व्रत करने और पूजा करने का सुझाव दिया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार कर्ण ने अपने पिता सूर्य देव के सम्मान में भव्य पूजा का आयोजन किया था।
कौन है छठी माता
छठी माता या षष्ठी देवी, सूर्य भगवान की बहन हैं और ऋषि कश्यप और माता अदिति की बेटी हैं। वह भगवान शिव के बेटे कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। कार्तिक मास में जब पूर्वांचल में छठ पूजा मनाई जाती है, उसी समय तमिलनाडु में स्कंद षष्ठी भी मनाई जाती है, जिसमें भगवान कार्तिकेय की पूजा उनकी पत्नियों के साथ की जाती है।
चार दिनों का अनुष्ठान है छठ पूजा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ व्रतियों के घरों में रोनक बढ़ जाती है। यही वो दिन होता है, जब छठ पूजा शुरू होती है। पहले दिन सभी व्रती किसी पवित्र नदी या तलाब में स्नान करते हैं और छठ व्रत का संकल्प लेते हैं। छठ पूजा का पहला पड़ाव होता है- नहाय-खाय यानी स्नान करना और खाना। माना जाता है कि ये व्रती को अंदर और बार से इस महापूजा के लिए तैयार करता है। इस दिन घर में सात्विक भोजन लौकी-चना की दाल और चावल बनता है, जिसे व्रती और उसका पूरा परिवार समान रूप से खाते हैं।
इसके अगले दिन खरना होता है, जिसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और अपने शरीर को अगले 36 घंटे के व्रत के लिए तैयार करते हैं। खरना में व्रती बिना नमक का एक समय का खाना खाते हैं, रोटी और गुड़ की खीर का। इसके बाद से उनका 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। छठ व्रति इस दिन किसी पवित्र नदी या तलाब पर जाते हैं और डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं। इस दिन छठ पूजा के घाट रंगोली और दीयों की रोशनी से सज उठते हैं। व्रती बांस के दउरा या सूप में नारियल, गन्ना, शकरकंद, सिंघाड़ा, अन्नास, केला, ठेकुआ, हल्दी, अदरक आदि रखकर उसे डूबते सूरज की तरफ उठाते हुए उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं। चौथे दिन सुबह उगते सूरज को फिर इसी विधि से अर्घ्य दिया जाता है। और इसी के साथ छठ महापर्व संपन्न हो जाता है।
हर पूर्वांचली के दिल में इसलिए बसी है छठ पूजा
छठ पूजा सूर्य भगवान के सम्मान में किया जाने वाला चार दिनों का पर्व है। इसमें व्रती 36 घंटे का लंबा निर्जला उपवास करते हैं और पानी में खड़े होकर उषा-प्रत्युषा को अर्घ्य देते हैं। उषा जहां उगते सूरज की किरण को कहते हैं, वहीं डूबते सूरज की लालिमा को प्रत्युषा कहते हैं। पुराणों में उषा-प्रत्युषा को भगवान सूर्य की पत्नी कहा गया है। छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी का, जब अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा एक ऐसे क्षेत्र का मुख्य पर्व है जहां जातीय असमानताओं की जड़ें बहुत गहरी हैं। लेकिन इस पूजा को करने का सभी को बराबर अधिकार है। इसमें किसी पंडित की भूमिका नहीं होती है और सभी व्रती समान रूप से नजर आने वाले भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। अगल से कोई अनुष्ठान नहीं, भगवान को मौसमी और स्थानीय फल अर्पित किए जाते हैं। कोई चाहे कितना अमीर हो या गरीब, छठ पूजा के नियम सबके लिए समान हैं। छठ पूजा की सफलता बड़े पैमाने पर मनाने से तय नहीं होती, बल्कि व्रती की आस्था और विश्वास पर निर्भर करती है।
यह पर्व संदेश देता है कि भगवान सूर्य के सामने कोई बड़ा या छोटा नहीं है, सब बराबर हैं। भगवान सूर्य को डूबते और उगते समय अर्घ्य देने का अर्थ है कि उसका अस्त होना, उदय होने जितना ही महत्पूर्ण है। यह बताता है कि जो आज अस्त हुआ है, वो पुन: और जरूर उदय होगा।