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Chhath Pooja 2025: सूर्य की उपासना का पर्व है छठ, जानिए इसका इतिहास और धार्मिक महत्व

Chhath Pooja 2025: छठ पूजा को लोकआस्था का महापर्व कहा जाता है। इसमें सूर्य देव की पूजा की जाती है और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं। छठ पूजा का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। यह पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है।

अपडेटेड Oct 22, 2025 पर 6:17 PM
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छठ पूजा में सूर्य देव और उनकी बहन शशि यानी छठ माता की पूजा की जाती है।

Chhath Pooja Significance: छठ पूजा को लोकआस्था का महापर्व कहते हैं। यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। वैसे ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, एक बार दिवाली के बाद और एक बार चैत्र में होली के बाद। इसे बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देव और उनकी बहन शशि यानी छठ माता की पूजा की जाती है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है, जिसमें नहाय-खाय का अनुष्ठान किया जाता है। इसका समापन सप्तमी के दिन प्रात: अर्घ्य के साथ होता है।

छठ पूजा में व्रती सूर्य देव से अपनी संतान और परिवार के लिए सुख-समृद्धि और निरोगी जीवन की कामना करते हैं। छठ पूजा के बारे में विभिन्न महापुराणों में सीमित रूप से बताया गया है। लेकिन माना जाता है कि यह उप-पुराण साम्व पुराण में इसके बारे में विस्तृत व्याख्या की गई है। इस पर्व के रीति-रिवाजों से मिलते-जुलते अनुष्ठान ऋग्वेद में सूर्य-पूजा के मन्त्रों में मिलते हैं।

सूर्यदेव और छठी देवी को समर्पित पर्व

छठ महापर्व मुख्य रूप से सूर्यदेव और छठी मइया की उपासना के लिए मनाया जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि उनके व्रत, अर्घ्य और नहाय-खाय के पालन से स्वास्थ्य, आयु, समृद्धि और परिवार की रक्षा होती है। इस पर्व का मुख्य दिन कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी तिथि पर आता है, जब व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह पर्व कृषि-समय की कृतज्ञता के रूप में भी देखा जाता है। मान्यता है कि फसल कटने के बाद सूर्य की कृपा और प्रकृति के तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए भी यह त्योहार मनाया जाता है।

छठ व्रत की पौराणिक कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी नि:संतान थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान कराए लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं प्राप्त हुई। इस कारण राजा-रानी दोनों बहुत दुखी थे। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप के निर्देशानुसार एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के परिणामस्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुईं, लेकिन उन्होंने मृत शिशु को जन्म दिया। इससे राजा इतने दुखी हो गए कि उन्होंने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया। संयोग से तभी देवी षष्ठी प्रकट हुईं, जिन्हें छठी मैया के नाम से भी जाना जाता है। देवी ने राजा से कहा कि यदि वह उनकी सच्चे मन से पूजा करेंगे और श्रद्धा के साथ व्रत करेंगे, तो उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होगी। देवी की आज्ञा का पालन करते हुए राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने पूरी श्रद्धा से छठ व्रत रखा। इसके परिणामस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसके बाद दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी रहने लगे।


रामायण और महाभारत में मिलता है छठ पूजा का उल्लेख

छठ पूजा का उल्लेख रामायण और महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि त्रेता युग में माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद भगवान सूर्य का उपवास रखा था। वहीं, द्वापर युग में महाभारत में युद्ध-पूर्व काल में कर्ण और द्रौपदी-पांडवों ने सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया था।

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