Chhath Puja 2025: छठ पूजा की सामग्री में फल, फूल, अनाज, सहित तमाम चीजों के साथ ही बांस के दउरा और सूप का भी इस्तेमाल किया जाता है। ये भी इस महापर्व का अभिन्न हिस्सा है, जिसके बिना ये त्योहार अधूरा माना जाता है। इसके इस्तेमाल के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं। यह पर्व आज से शुरू हो चुका है और इसमें कल खरना की विधि की जाएगी। इसके बाद सोमवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। कल खरना प्रसाद के बाद से छठ व्रती 36 दिनों का निर्जला उपवास शुरू करेंगे। आइए जानें इस व्रत में बांस के दउरा और सूप का क्या महत्व है?
वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है बांस
छठ पूजा में शुद्धता और पवित्रता दोनों का विशेष महत्व होता है। बांस से बने सूप और दउरा को शुद्ध और सात्विक माना जाता है, इसलिए पूजा में इसका उपयोग किया जाता है। साथ ही, छठ पूजा प्रकृति और सूर्य उपासना का प्रतीक है। इसमें सूर्य भगवान और छठी मइया की पूजा की जाती है। इसलिए पूजा में भी वही चीजे इस्तेमाल होती हैं, जो सीधे प्रकृति से जुड़ी होती हैं। सूप और दउरा भी प्रकृति से जुड़े हैं।
इसके अलावा हिंदू धर्म में बांस को वंश वृद्धि से भी जोड़ा जाता है। व्रती बांस की वृद्धि के समान वंश की भी वृद्धि की कामना करते हैं। छठ पूजा में दउरा और सूप का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है।
छठ पूजा के दौरान सूप में ठेकुआ, केला, गन्ना, नारियल, सिंघाड़ा और मौसमी जैसे प्रसाद रखे जाते हैं। फिर इन्हें घाट पर ले जाकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। बांस के सूप में रखे प्रसाद को पवित्र अर्पण माना जाता है।
छठ पूजा की हर परंपरा के पीछे कुछ न कुछ कारण जुड़ा हुआ है। बांस भी उसी में से है। सूप और दउरा के इस्तेमाल से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता, क्योंकि ये पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल होते हैं। बांस में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, जिससे इसमें रखा प्रसाद लंबे समय तक ताजा रहता है। इस व्रत में आधुनिक साधनों के बावजूद बांस के सूप का उपयोग करना शुभ माना जाता है। छठ पूजा में प्लास्टिक या धातु के बर्तनों का उपयोग नहीं किया जाता है।