Chhath Puja 2025: नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक, जानें हर दिन की पूरी जानकारी
Chhath Puja 2025: लोक आस्था और भक्ति का प्रतीक छठ पूजा 2025 इस साल एक खास तिथि पर मनाई जाएगी। श्रद्धालु इसके आगमन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। घाटों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और माहौल भक्तिमय बन गया है। जानिए इस बार कब से शुरू होगा आस्था का यह पवित्र पर्व
Chhath Puja 2025: छठ पूजा का सबसे पवित्र पल तब आता है जब व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
छठ पूजा 2025 का इंतजार अब खत्म होने जा रहा है। इस साल यह पवित्र पर्व 25 अक्टूबर से शुरू होगा। छठ पूजा को लोक आस्था का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, जिसमें लोग सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं। यह पर्व हर साल बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। गांव से लेकर शहर तक हर जगह भक्तिमय माहौल बन जाता है। घरों की साफ-सफाई, घाटों की तैयारी और छठ गीतों की गूंज से पूरा वातावरण पवित्र हो जाता है। इस त्योहार में महिलाएं और पुरुष व्रत रखकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
माना जाता है कि छठी मैया की पूजा करने से जीवन में शांति और खुशहाली आती है। यह पर्व न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि इसमें प्यार, विश्वास और एकता की भावना भी झलकती है, जो इसे खास बनाती है।
जानिए कब मनाया जाएगा छठ पर्व
इस साल छठ पर्व का शुभारंभ शनिवार, 25 अक्टूबर को नहाय खाय से होगा।
इसके अगले दिन रविवार, 26 अक्टूबर को खरना मनाया जाएगा, जो छठ व्रत का दूसरा और अत्यंत पवित्र चरण है।
फिर सोमवार, 27 अक्टूबर को व्रती महिलाएं सांध्य अर्घ्य देकर डूबते सूर्य को प्रणाम करेंगी।
पर्व का समापन मंगलवार, 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को उषा अर्घ्य देने के साथ होगा।
खरना
छठ पूजा का दूसरा दिन यानी खरना आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ‘खरना’ का अर्थ ही पवित्रता और शुद्धता है। इस दिन व्रती व्यक्ति पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम के समय प्रसाद ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि खरना के दिन ही छठी मैया घर में प्रवेश करती हैं, इसलिए इस दिन घर-आंगन की स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
खरना का भाव केवल भोजन या उपवास तक सीमित नहीं है, बल्कि ये आत्मसंयम, श्रद्धा और सूर्य देव व छठी मैया के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक है।
खरना की पूजा-विधि
खरना के दिन व्रती महिलाएं मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं।
ये खीर आमतौर पर आम की लकड़ी से जलाए गए चूल्हे पर पकाई जाती है, ताकि वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहे।
इस प्रसाद में गेहूं के आटे की रोटी या पूड़ी और पारंपरिक ठेकुआ भी शामिल किया जाता है।
सबसे पहले इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित किया जाता है, और फिर व्रती इसे स्वयं ग्रहण करते हैं।
36 घंटे का कठोर व्रत
खरना के प्रसाद के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं।
इस दौरान वे ना भोजन करते हैं, ना जल ग्रहण करते हैं।
ये कठिन व्रत भक्तों की अटूट आस्था और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक है, जो ये दर्शाता है कि श्रद्धा के आगे शारीरिक कठिनाइयां भी कुछ नहीं हैं।
सूर्य उपासना का पर्व
छठ पूजा का सबसे पवित्र पल तब आता है जब व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
ये पल सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ का व्रत पूर्ण किया जाता है।
इस दौरान घाटों पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है, जहां लोकगीतों की गूंज और दीपों की रौशनी से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है।