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Chhath Puja 2025 Kharna Prasad: खरना प्रसाद बनाते समय इस नियम का पालन करना होता है जरूरी, जानें क्या है ये?

Chhath Puja 2025 Kharna Prasad: छठ पूजा का महापर्व कल से शुरू हो रहा है। इसमें पहले दिन नहाय-खाय का अनुष्ठान होता है और दूसरे दिन खरना किया जाता है। खरना का प्रसाद बनाते समय कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है। इन नियमों के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है।

अपडेटेड Oct 24, 2025 पर 8:23 PM
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला खरना अनुष्ठान का प्रसाद बहुत महत्वपूर्ण होता है।

Chhath Puja 2025 Kharna Prasad: हिंदू धर्म में कार्तिक मास का बहुत महत्व माना गया है। ये पूरा महीना धार्मिक आस्था और श्रद्धा को समर्पित होता है, क्योंकि इसमें एक के बाद एक कई बड़े त्योहार और व्रत आते हैं। इसी मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत होती है। चार दिनों तक चलने वाली इस पूजा को लोग बड़ी आस्था और सख्त नियमों का पालन करते हुए मनाते है। इसके पहले दिन नहाय-खाय होता है और दूसरे दिन खरना किया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला खरना अनुष्ठान का प्रसाद बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद से व्रतियों का 36 घंटों का निर्जला व्रत भी शुरू होता है। इसलिए इसमें साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान दिया जाता है। आइए जानें खरना प्रसाद के नियम

गुड़ की खीर और रोटी होता है खरना प्रसाद

छठ पूजा में दूसरा दिन 'खरना' या 'लोहंडा' का है, जिसमें व्रती प्रसाद के तौर पर गुड़गु की खीर और रोटी बनाते हैं। खास बात ये है कि प्रसाद मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर ही बनाया जाता है। यह प्रसाद बनाने के लिए अन्य लकड़ी का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनता है खरना प्रसाद 

खरना वाले दिन पर व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को मिट्टी का नया चूल्हा तैयार किया जाता है। यह प्रसाद नए चूल्हे पर ही बनता है, जिसमें पहले कभी कोई भोजन ना पकाया गया हो। इसके अलावा चूल्हे को जलाने के लिए आम की सूखी लकड़ी का उपयोग होता है। गुड़, चावल, दूध और घी से बनी खीर पीतल या मिट्टी के बर्तन में पकाई जाती है। इसके साथ गेहूं की पूड़ी या रोटी भी बनाई जाती है। सूर्यदेव को अर्घ्यदेकर व्रती यह प्रसाद ग्रहण करते हैं।

खरना में आम की लकड़ी का महत्व


आम की लकड़ी शुद्ध और सात्विक मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को आम का पेड़ प्रिय है, जो समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है। आम की लकड़ी जलाने से प्रसाद में सकारात्मक ऊर्जा आती है, जो व्रत के पुण्य को बढ़ाती है। यह भी कहा जाता है कि मैया को अन्य लकड़ी का धुआं अप्रसन्न कर सकता है, क्योंकि ये अशुद्ध होता है। साथ ही, आम की लकड़ी का धुआं वातावरण को शुद्ध करता है।

खरना प्रसाद के बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत 

खरना छठ पूजा के दूसरे दिन किया जाता है। व्रती खरना प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं। मान्यता है कि खरना पर बनी खीर छठी मैया का आशीर्वाद है, जो संतान सुख, सेहत और समृद्धि देती है। परिवार के सदस्यों को प्रसाद बांटने से घर में एकता और खुशहाली आती है। छठ पूजा में आम की लकड़ी पर खरना प्रसाद बनाना शुद्धता, स्वास्थ्य और आस्था का प्रतीक है।

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