Hari Har Milan 2025 Ujjain: आज मध्यरात्रि में भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालन सौंपेंगे भगवान शिव, उज्जैन में होगा हरि हर मिलन

Hari Har Milan 2025 Ujjain: भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर चार महीने की योग निद्रा से जाग चुके हैं। अब वह धरती के संचालन का कामकाज फिर संभालेंगे। भगवान शिव आज मध्यरात्रि में उन्हें सृष्टि के कार्यभार को सौंप देंगे। जानिए हरि हर मिलन का महत्व, पूजा विधि और इतिहास

अपडेटेड Nov 03, 2025 पर 9:12 PM
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इस साल हरि हर मिलन का अलौकिक और अद्भुत पर्व 4 नवंबर, 2025 को मनाया जाएगा।

Hari Har Milan 2025 Ujjain: हरि हर मिलन भगवान शिव और भगवान विष्णु के मिलन का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धार्मिक परंपरा में इसका बहुत महत्व माना गया है। हरि हर मिलन का ये पर्व महाकाल की नगरी उज्जैन में हर साल कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि पर आयोजित किया जाता है, जहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है। इस साल हरि हर मिलन का अलौकिक और अद्भुत पर्व 4 नवंबर, 2025 को मनाया जाएगा।

इस दिन, महाकालेश्वर मंदिर से भगवान महाकाल यानी शिव जी को पालकी में बैठाकर भव्य शोभायात्रा निकलती है, जो गोपाल मंदिर तक जाती है। यहां उनका भगवान विष्णु से एक धार्मिक समारोह में मिलन होता है जिसे हरि हर मिलन के रूप में जाना जाता है। यह उत्सव उस क्षण का प्रतीक है जब दो सर्वोच्च देवता ब्रह्मांडीय संतुलन और सद्भाव को बहाल करने के लिए एक हो जाते हैं। यह आयोजन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की मध्यरात्रि में होता है, जिसे वैकुंठ चतुर्दशी भी कहते हैं।

हरि हर मिलन समय

पंचांग के अनुसार, हरि हर मिलन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ता है। इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है।

आयोजन तिथि और समय

हरि हर मिलन 2025 तिथि मंगलवार, 4 नवंबर 2025


चतुर्दशी तिथि प्रारंभ : 4 नवंबर 2025 प्रातः 2:05 बजे

चतुर्दशी तिथि समाप्त : 4 नवंबर 2025 रात्रि 10:36 बजे

हरि हर मिलन का महत्व

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हरि हर मिलन का त्योहार भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्यभार फिर संभालने का प्रतीक है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, चतुर्मास काल के दौरान, भगवान विष्णु योग निद्रा में पाताल लोक में निवास करते हैं। इस अवधि के लिए सृष्ट के पालन-पोषण का भार भगवान शिव को सौंप दिया जाता है। जब भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर जागते हैं, तो भगवान शिव प्रतीकात्मक रूप से सृष्टि का कार्यभार उन्हें वापस सौंप देते हैं। वैकुंठ चतुर्दशी पर, भगवान महाकाल एक दिव्य पालकी में सवार होकर गोपालजी के मंदिर में यह दायित्व सौंपने आते हैं।

पूजा विधि

हरि हर मिलन की रस्में सुबह ब्रह्म मुहूर्त में शुरू होती हैं। मध्यरात्रि में बाबा महाकाल और श्री गोपाल जी की मूर्तियों को आमने-सामने स्थापित किया जाता है, जो दिव्य पुनर्मिलन का प्रतीक है। पुजारी आदान-प्रदान अनुष्ठान करते हैं – जहां भगवान महाकाल गोपाल जी को तुलसी की माला अर्पित करते हैं, और भगवान गोपाल जी महाकाल को बिल्व (बेल) की माला भेंट करते हैं। वैदिक मंत्रों और भजनों के उच्चारण के बीच फल, फूल और प्रसाद का आदान-प्रदान किया जाता है।

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