Kalashtami vrat 2025: 18 या 19 जून को कब है आषाढ़ कालाष्टमी? जानें सही तारीख और पूजा का शुभ मुहूर्त

Kalashtami vrat 2025: कब है कालाष्टमी व्रत : आषाढ़ महीने में आने वाली कालाष्टमी का खास महत्व होता है। इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण हो सकती हैं। माना जाता है कि इस दिन पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और कष्ट दूर होते हैं

अपडेटेड Jun 17, 2025 पर 12:59 PM
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Kalashtami vrat 2025: कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव की पूजा करने के लिए संध्या का समय सबसे श्रेष्ठ माना गया है।

आषाढ़ मास की कालाष्टमी का विशेष महत्व है, क्योंकि ये भगवान शिव के रौद्र और भयनाशक रूप कालभैरव को समर्पित होती है। सनातन धर्म में कालभैरव को समय और सुरक्षा का अधिपति माना जाता है। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से साधक के जीवन में छाए हर प्रकार के भय, संकट और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। साथ ही व्यक्ति को अद्भुत साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भगवान कालभैरव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी विशेष कृपा बनाए रखते हैं।

कहते हैं कि कालभैरव का पूजन जीवन से अशांति और बाधाओं को दूर कर सुख-समृद्धि बढ़ाता है। आषाढ़ माह की कालाष्टमी पर विशेष रूप से प्रदोष काल में पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है। भक्तजन इस अवसर पर मंत्रजाप, अभिषेक और आरती कर भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कब रखा जाएगा व्रत?


दृक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 जून को दोपहर 1 बजकर 34 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 19 जून को सुबह 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। हालांकि कालाष्टमी का पूजन मुख्य रूप से संध्या के समय किया जाता है, इसलिए इस बार व्रत 18 जून को ही रखा जाएगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त

कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव की पूजा करने के लिए संध्या का समय सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन शाम को लाभ और शुभ चौघड़िया तथा अमृत मुहूर्त में पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इन समयों में की गई पूजा से कालभैरव जल्दी प्रसन्न होते हैं और साधक की हर इच्छा पूरी करते हैं।

कालभैरव मंत्रों का महत्व

भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। इन मंत्रों में दिव्यता और शक्ति होती है, जो साधक को साहस और सुरक्षा प्रदान करते हैं। कालभैरव मंत्रों के उच्चारण से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और भय से मुक्ति मिलती है।

आषाढ़ कालाष्टमी की पूजा-विधि

कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद घर के मंदिर को साफ करके भगवान शिव और कालभैरव की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर उनका पंचामृत से अभिषेक करें। फिर धूप, दीप और गंगाजल अर्पित करें और भगवान शिव परिवार की श्रद्धा से पूजा करें। इसके बाद भोग लगाकर 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का कम से कम 108 बार जप करना शुभ माना जाता है। पूजा के अंत में भगवान से क्षमा याचना कर आशीर्वाद प्राप्त करें।

पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री

आषाढ़ कालाष्टमी की पूजा में फल, फूल, धतूरा, अक्षत, धूपबत्ती, गंगाजल, बिल्वपत्र, काला तिल, सफेद फूल, सफेद चंदन और घी का दीपक जरूरी होता है। मान्यता है कि ये सामग्री भगवान कालभैरव को अत्यंत प्रिय है और इनके उपयोग से पूजा सफल मानी जाती है।

आषाढ़ कालाष्टमी का पुण्य लाभ

कहा जाता है कि जो भक्त इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जीवन में तरक्की, शांति और सुरक्षा बनी रहती है। कालाष्टमी पर भगवान कालभैरव की उपासना करने से शत्रु भी शांत रहते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

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First Published: Jun 17, 2025 12:57 PM

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