Pitra Paksh 2025: श्राद्ध में काले तिल का है बहुत महत्व, जानिए इसका पौराणिक कारण और कथा

Pitra Paksh 2025: पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध का समय यानी पितृ पक्ष शुरू हो चुका है। पितृ पक्ष की बहुत अहम विधि है, तर्पण। इसमें कई तरह की चीजें इस्तेमाल करते हैं, जैसे तिल। श्राद्ध की पूरी विधि और तर्पण में सफेद तिल का इस्तेमाल वर्जित माना गया हैं। आइए जानें इसी वजह

अपडेटेड Sep 08, 2025 पर 10:11 AM
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श्राद्ध में काले का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से मानी जाती है।

Pitra Paksh 2025: पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करने की अवधि यानी पितृ पक्ष शुरू हो चुका है। आमतौर से ये अवधि 15-16 दिनों की होती है। माना जाता है कि इस अवधि में पितृ अपने वंशजों को देखने के लिए धरती पर आते हैं। इस अवधि में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तपर्ण करने वाले लोगों को अपने पूर्वजों का आर्शीवाद मिलता है। श्राद्ध के दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। इसमें तिल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यहां ये जानना जरूरी है कि इसके लिए सफेद तिल का इस्तेमाल वर्जित होता है। तर्पण और श्राद्ध में सिर्फ काले तिल का ही इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं इसका असली कारण।

भगवान विष्णु की पसीने की बूंदें हैं काले तिल

पितृ तर्पण या श्राद्ध की विधि में काले तिल का विशेष स्थान है। साथ ही सफेद तिल के इस्तेमाल को पूरी तरह से वर्जित मनाया गया। इसकी असली वजह हमारे धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में मिलती है। गरुड़ पुराण के मुताबिक काला तिल और कुशा दोनों की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुशा की जड़ में जहां भगवान ब्रह्मा स्थित होते हैं, वहीं इसके मध्य भाग में भगवान विष्णु और सबसे आगे के भगवान शिव होते हैं। इस तरह कुषा का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए श्राद्ध की पूरी विधि में इसका विशेष महत्व है।


इसी तरह, पौराणिक काल में हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को बहुत तकलीफ दी थी। यह देख कर भगवान विष्णु को इतना गुस्सा आया था जिससे उनके शरीर पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं। ये पसीने की बूंदें जमीन पर काले तिल के रूप में गिरी थीं। इसलिए इसका पितृ पक्ष की विधि में विशेष स्थान है।

काले तिल में होती है नकारात्मक ऊर्जा को सोखने की शक्ति

शास्त्रों में पितृ पक्ष की अवधि को शुभ नहीं माना गया है। इस अवधि में आसपास कई तरह की ऊर्जाएं होती हैं, जिनके नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। आसपास के वातावरण को शुद्ध करने के लिए काले तिल का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि ये भगवान विष्णु के शरीर से उपजा है और भगवान विष्णु पितरों के आराध्य हैं। इसलिए पितरों को काला तिल प्रिय होता है। काले तिल में पितरों को आकर्षित करने की ताकत होती है, जिससे वे श्राद्ध और तर्पण की समाग्री को स्वीकार कर पाते हैं। इसलिए पितरों को जल के साथ काले तिल अर्पित करते हैं। इसमें वातावरण और शरीर के भीतर मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को सोखने की क्षमता होती है। ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष से जुड़े शनि, राहु और केतु जैसे ग्रह भी काले तिल का संबंध से शांत होते हैं। श्राद्ध के दौरान काले तिल इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम करते हैं।

इसलिए वर्जित है सफेद तिल

ज्योतिष में सफेद तिल का संबंध चंद्रमा और शुक्र से माना गया है। इसका उपयोग शुभ कार्यों और सुख, शांति और समृद्धि में किया जाता है। इसे पूजा के लिए बनने वाले प्रसाद में भी इस्तेमाल किया जाता है।

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First Published: Sep 08, 2025 10:01 AM

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