Kharmas 2025 Upay: खरमास की अवधि का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इसमें भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा की जाती है। खरमास की अवधि लगभग 30 दिनों की होती है। इसमें कोई नया काम या शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार जैसे मांगलिक काम नहीं किए जाती है। सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करते हैं, तब खरमास शुरू होता है। इस अवधि का समापन मकर संक्रांति पर होता है, जब सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसी दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इसके बाद से मांगलिक कार्यों की शुरू हो जाती है। इस अवधि में मांगलिक कार्य नहीं होते, लेकिन पूजा-अनुष्ठान और सूरज को जल देना और दान कर्म का बहुत महत्व माना गया है।
खरमास में भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और खुशियां आती हैं। लेकिन, इस दौरान कई ऐसे नियम हैं, जिनका पालन बेहद जरूरी माना गया है। खरमास में खान-पान का भी विशेष महत्व है। उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज ने बताया कि खरमास में राई और उड़द की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर दोष लगता है। आइए जानें इसकी असली वजह
सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने पर लगता है खरमास
खरमास के समय सूर्य देव धनु अथवा मीन राशि में स्थित होते हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि में सूर्य की ऊर्जा कुछ कमी आती जाती है। चूंकि, सूर्य को नवग्रहों का अधिपति और आत्मबल का प्रमुख कारक माना गया है, इसलिए उनकी पूर्ण कृपा के अभाव में किए गए मांगलिक कार्य अपेक्षित सफलता प्रदान नहीं कर पाते। इतना ही नहीं, इस अवधि में देवगुरु बृहस्पति भी अपनी संपूर्ण शुभ शक्ति का प्रभाव नहीं दिखा पाते, जिसके कारण शुभ आयोजनों का फल अधूरा या कमजोर रह सकता है।
क्यों बदलते हैं खानपान के नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास का प्रभाव केवल शुभ कार्यों पर ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन और खानपान पर भी पड़ता है। मान्यता है कि इस दौरान सादा, हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान मूंग की दाल, चना, जौ, बाजरा, दूध, फल और हरी सब्जियां सुपाच्य मानी जाती हैं। हल्का भोजन शरीर को स्वस्थ और मन को शांत रखने में सहायक होता है।