Kalpvas 2026: कल्पवास को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। कल्पवास तीर्थों के राजा कहे जाने वाले तीर्थराज यानी प्रयागराज में हर साल पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघ माह की पूर्णिमा तक किया जाता है। इस माह में जप, तप,स्नान और दान किया जाता है। कल्पवास के दौरान श्रद्धालु शरीर की ही नहीं आत्मा का शुद्धि के लिए कठिन नियमों का पालन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह में इन कामों को करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। यानी इन कामों का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। कल्पवास के दौरान सात्विक नियमों का पालन करने वाले भक्त जीवन-मृत्यु के चक्र से छूट जाते हैं। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर बिताया जाने वाला एक महीना 'कल्पवास' कहलाता है।
एक निश्चित समय (कल्प) तक पवित्र स्थान पर निवास (वास) करना कल्पवास का अर्थ है। परंपरा के अनुसार, कल्पवास की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा से की जाती है। हालांकि, अपनी क्षमता के अनुसार श्रद्धालु 5, 11 और 21 दिनों का संकल्प लेकर कल्पवास कर सकते हैं। अध्यात्मिक रूप से कल्पवास एक साधना है, जिसमें व्यक्ति कुछ समय के लिए सांसारिक आकर्षणों, भोग-विलास और मोह-माया से दूर होकर सिर्फ भगवान की अराधना में लीन रहता है।
तीन बार स्नान : कल्पवास करने वाले सभी भक्तों को इस सबसे कठिन नियम का पालन करना होता है। उन्हें कड़ाके की ठंड में रोजाना तीन बार (सुबह, दोपहर और शाम) संगम में स्नान करना होता है। इसे शरीर और मन की शुद्धि का मार्ग माना जाता है।
जमीन पर सोना : कल्पवास का पलन करने वाले भक्त बिस्तरों के बजाय जमीन पर पतली चटाई बिछाकर सोते हैं। इसे 'भूमि शयन' कहा जाता है, जो अहंकार को खत्म करने का प्रतीक है।
सत्य और अहिंसा का पालन : इस दौरान कल्पवासी को किसी की निंदा करना, झूठ बोलना, क्रोध करना या अपशब्द कहना भी वर्जित माना गया है। उन्हें इस दौरान मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना होता है।
कल्पवास के दौरान क्या न करें
कल्पवास के दौरान श्रद्धालु मांसाहार, शराब, प्याज और लहसुन जैसे तामसिक भोजन का पूरी तरह त्याग करते हैं। गृहस्थ सुखों से दूर रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, संगम पर कल्पवास करने वाले व्यक्ति के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।