Kalsarp Dosh: 12 तरह के होते हैं कालसर्प दोष, जीवन पर इस तरह डालते हैं असर
Types of Kalsarp Dosh: ज्योतिष में कालसर्प दोर्ष की खास जगह है। इसे सबसे खतरनाक दशाओं में से एक माना जाता है। इससे प्रभावित व्यक्ति के जीवन में गंभीर असर होता है। इसकी अहमियत इसलिए भी अधिक है क्योंकि ये 1 या 2 नहीं पूरे 12 तरह का होता है और हर एक का असर भी अलग तरह का होता है। आइए जानें।
कालसर्प दोर्ष ग्रहों की बहुत महत्वपूर्ण दशा होती है। ये तब बनती है जब कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं। इसके असर से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके कुंडली के सबसे गंभीर और खतरनाक दोषों में से एक माना जाता है। यह कॅरियर, सेहत संबंध समेत जीवन के हर पक्ष को प्रभावित करता है। इतना ही नहीं कई मामलों में तो ये जानलेवा तक साबित होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ये 12 प्रकार का होता है। हर एक प्रकार का असर और उपाय अलग-अलग होता है। आइए जानते हैं कुंडली में कालसर्प दोष कब बनता है और ये कितने तरह का होता है ?
कब बनता है कालसर्प दोष ?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी कुंडली में नौ ग्रह होते हैं, जिनमें राहु और केतु भी शामिल हैं। ये दोनों ग्रह अगर कुंडली के दो छोर पर हैं और बाकी सारे ग्रह इनके बीच स्थित हैं, तो यह स्थिति कालसर्प दोष बनाती है। हालांकि, ये दोनों छाया ग्रह हैं,लेकिन इनकी ये युति जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
कालसर्प दोष के हैं 12 प्रकार
अनंत कालसर्प दोष : इस दोष का निर्माण तब होता है, जब कुंडली में राहु लग्न भाव में और केतु सप्तम भाव में होता है। बाकी सारे ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में स्थित होते हैं। इससे ग्रसित व्यक्ति को सफलता पाने के लिए कई गुना ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन धैर्य के साथ आगे बढ़ने वाले व्यक्ति को अंत में सफलता मिलती है।
कुलिक कालसर्प दोष : इस प्रकार का कालसर्प दोष राहु के द्वितीय भाव में और केतु के अष्टम भाव में होने पर लगता है। इसके शिकार व्यक्ति को जीवन में वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हें घाटा होने का, शर्मिंदगी और कर्ज होने का डर रहता है। इससे बचने के लिए अपने वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाए रखें।
वासुकि कालसर्प दोष : कुंडली में जब राहु तीसरे स्थान में और केतु नौवें घर में स्थित हो तो वासुकि काल सर्प दोष लगता है। ये दोष पारिवारिक एकता को प्रभावित करता है और इसके विकट होने पर आपसी संबंधों में दूरियां भी आ सकती हैं। परिवार को गंभीर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
पद्म कालसर्प दोष : इस दोष से सबसे ज्यादा प्रभावित छात्र होते हैं और उनका पढ़ाई या कक्षा में ध्यान नहीं रहता है। इसका निर्माण तब होता है जब राहु पंचम भाव में और केतु एकादश भाव में होते हैं। इससे बचने के लिए अपने बच्चे की पढ़ाई में उसका ध्यान रखें और कॅरियर संबंधी फैसले लेने में मार्गदर्शन करें।
महापद्म कालसर्प दोष : इस दोष से प्रभावित व्यक्ति में मानसिक स्पष्टता का अभाव होता है। समय आगे बढ़ने पर ये व्यक्ति लापरवाही वाले फैसले करते हैं। राहु छठवें घर में स्थित होने और केतु के बारहवें भाव में होने पर ये योग बनता है।
तक्षक कालसर्प दोष : जब कुंडली में राहु सातवें भाव में हो और केतु लग्न या पहले भाव में होता है, तब तक्षक कालसर्प दोष बनता है। इसकी वजह से जातक के विवाह में परेशानियां आती हैं। शादी में देरी होती है, या हो चुकी है तो ससुराल पक्ष से दिक्कत होती है। ऐसे लोगों को प्रेम विवाह पर विचार नहीं करना चाहिए।
शंखपाल कालसर्प दोष : आपकी कुंडली में अगर राहु चतुर्थ भाव में और केतु दशम भाव में हो तो शंखपाल कालसर्प दोष लगता है। कुंडली में ये योग बनने से जीवन में आर्थिक तंगी, बीमारी और अव्यवस्था होती है। यह प्यार, बच्चे की शिक्षा आदि जैसे चीजों में रुकावट डाल सकता है।
कर्कोटक कालसर्प दोष : यह तब बनता है जब कुंडली के दूसरे भाव में केतु और आठवें भाव में राहु होता है। यह दोष जीवन में पैसे आने के रास्ते को रोकता है। इसकी वजह से कॅरियर में रुकावट आती है और नौकरी में आगे बढ़ने के अवसर प्रभावित होते हैं।
शंखचूड़ कालसर्प दोष : अगर किसी की कुंडली में केतु तीसरे स्थान में और राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ कालसर्प दोष लगता है। ज्योतिष की भाषा में यह दोष तो है, लेकिन इससे प्रभावित जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मगर, इसमें काफी समय लगता है, जिसकी वजह से पूरे परिवार को परेशानियों से गुजरना पड़ता है।
घातक कालसर्प दोष : राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में हो तो घातक कालसर्प दोष लगता है। ज्योतिषियों के अनुसार, कुंडली में यह दोष होने पर अपनी मां की खूब सेवा करनी चाहिए, उनका ध्यान रखें और उन्हें कभी दुखी न करें। इससे आपको अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
विषधर कालसर्प दोष : कुंडली में ये दोष तब लगता है जब राहु ग्यारहवें भाव में और केतु पंचम भाव में स्थित होते हैं। यह ऐसे जातक को काफी परेशान करता है, जो उच्च शिक्षा पाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके प्रभाव से जातक चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।
शेषनाग कालसर्प दोष : राहु जब 12वें घर में और केतु 6ठे स्थान पर विराजमान होते हैं, तब इस कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस दोष के साथ जन्म लेने वाले जातक को वो हमेशा मिलता है, जो वे चाहते हैं। मगर, इसमें काफी समय लग जाता है। इसके प्रभाव से कई बार लोग कर्ज के भी शिकार हो जाते हैं।