Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा को पूरे साल में सबसे बड़ी पूर्णिमा मानते हैं। इस दिन चंद्रमा धरती की अपनी कक्षा में उसके सबसे निकट होता है। इसकी वजह से ये अधिक चमकीला और बड़ा नजर आता है। शरद पूर्णिमा अश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। इस पूर्णिमा का हिंदू धर्म में क्या महत्व है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे साल में इस पूर्णिमा के कई नाम और उससे जुड़े महत्व हैं। जैसे इसका एक नाम कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी है। इसी तरह, इसके साथ चांदनी में खीर रखने की धार्मिक मान्यता भी जुड़ी है। लेकिन, क्या ये सच है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है और इसमें खीर रखने से वो भी अमृत के समान हो जाती है। आइए जानें
इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 2 दिन मनाया जाएगा। 6 अक्टूबर, सोमवार को व्रत की और 7 अक्टूबर को स्नान-दान की पूर्णिमा रहेगी। शरद पूर्णिमा पर्व से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। इनमें से सबसे बड़ी मान्यता ये है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में अमृत होता है। प्राचीन धर्म ग्रंथों के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। चंद्रमा अपनी उच्च स्थिति में रहता है जो बहुत ही शुभ फल देने वाली मानी गई है। चंद्रमा औषधियों का स्वामी भी है। उच्च स्थिति के चंद्रमा की किरणों में भी उसके विशेष औषधीय गुण आ जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है।
इस पूर्णिमा तिथि से जुड़ी एक अन्य परंपरा ये भी है कि इस रात खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं और सूर्योदय से पहले इसे खाते हैं। माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों से निकलने वाला अमृत उस खीर को अमृतयुक्त बना देता है। ये खीर खाने से सेहत को फायदा होता है और आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
हालांकि, खगोल शास्त्रियों की सोच थोड़ी अलग है। उनका मानना है कि पूरे साल में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी की अपनी कक्षा में उसके सबसे नजदीक स्थिति में होता है। इस समय चंद्रमा की सबसे ज्यादा रोशनी पृथ्वी तक पहुंचती हैं। ये स्थिति पूरे साल में और कभी नहीं बनती। हमारे पूर्वज ये बात जानते थे कि इस दिन चंद्रमा से आने वाली किरणें हमारी सेहत के लिए लाभदायक होती हैं, इसलिए उन्होंने इस रात को खीर बनाकर आसमान के नीचे रखने की परंपरा बनाई।