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Shardiya Navratri 2025: मां शैलपुत्री की कहानी और पहले दिन का शुभ भोग, जानें हर जरूरी बात

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो चुका है। नौ दिनों तक यह पर्व मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा का प्रतीक है। पहले दिन की पूजा विशेष रूप से मां शैलपुत्री को समर्पित होती है। भक्त इस दिन सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की कामना करते हैं और घर-घर कलश स्थापना करते हैं

अपडेटेड Sep 22, 2025 पर 9:52 AM
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Shardiya Navratri 2025: शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करने से पूजा का फल बढ़ता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो चुका है। ये पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है और मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घर-घर में कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है, जिसे शुभता, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान लोग अपने घरों को सुंदर ढंग से सजाते हैं, रंगोली बनाते हैं और भजन-कीर्तन में मग्न रहते हैं। पहले दिन की पूजा विशेष रूप से मां शैलपुत्री को समर्पित होती है। उन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है और उनका ये स्वरूप शक्ति, स्थिरता और भक्ति का प्रतीक है।

भक्त इस दिन मां से अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की कामना करते हैं। नवरात्रि का ये पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि ये हमें आत्म-शक्ति, श्रद्धा और धैर्य का संदेश भी देता है।

पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा


नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विशेष रूप से मां शैलपुत्री को समर्पित होती है। उन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। उनका स्वरूप शक्ति, स्थिरता और भक्ति का प्रतीक है। भक्त इस दिन मां से अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की कामना करते हैं।

मां शैलपुत्री का दिव्य स्वरूप

मां शैलपुत्री का रूप बेहद सौम्य और सुंदर है। उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किए हैं, जो पवित्रता का प्रतीक हैं। उनकी सवारी वृषभ (बैल) है। दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। उनका यह रूप शक्ति और शांति का अद्भुत मिश्रण है।

मां शैलपुत्री की कहानी

मां शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और सती व उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती माता यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं। वहां उन्हें अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। दुख और क्रोध में उन्होंने यज्ञ में स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया। इसके बाद सती हिमालय में जन्मीं और शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ।

पूजा का महत्व

पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से जीवन में स्थिरता, सुख और सकारात्मक ऊर्जा आती है। कहा जाता है कि इस दिन की पूजा से चंद्रमा से जुड़ी अशुभ शक्तियां दूर होती हैं और साधक के मूलाधार चक्र को जागृत किया जाता है।

भोग और आहार

मां को खुश करने के लिए दूध और चावल से बनी खीर का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा सफेद मिठाइयां और सफेद फूल भी चढ़ाए जाते हैं। ऐसा करने से घर में शांति और समृद्धि बनी रहती है।

मंत्र और जाप

पूजन के दौरान विशेष मंत्रों का जाप करने से फल कई गुना बढ़ जाता है।

मुख्य मंत्र:

“या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”

बीज मंत्र:

“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥”

श्रद्धा भाव से इन मंत्रों का उच्चारण करने से घर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

घटस्थापना का शुभ समय

नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है। इस बार प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक है।

शुभ समय: सुबह 6:50 से 9:08 बजे तक

अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:50 से दोपहर 12:38 बजे तक

शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करने से पूजा का फल बढ़ता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

Navratri 2025: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को लगाएं इस चीज का भोग, जानें पूजा मंत्र और महत्व

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