Shardiya Navratri 2025: अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू हो जाते हैं। इस दौरान मां दुर्गा के उपासक उनके नौ रूपों यानी उसमें समायी नौ शक्तियों की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार का बहुत महत्व माना गया। नवरात्र का समय शुरू होने के साथ ही घर, बाजार, पड़ोस चारों तरफ त्योहारों की चहल-पहल शुरू हो जाती है। आस्था, उल्लास और उत्सव का माहौल रहता है, मां के जयकारे गूंजते हैं और हवा में धूप, नैवेद्य और लोबान की खुशबू महसूस होने लगती है। लेकिन कभी सोचा है कि ये पर्व आखिर शुरू कैसे हुआ, देवी का नाम दुर्गा कैसे पड़ा और सबसे पहली बार किसने मां दुर्गा की पूजा की थी ? आप भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो यहां पढ़ें।
ब्रह्मा जी के वरदान से अजेय बना महिषासुर
पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के राजा रंभ के पुत्र महिषासुर के वध से हुई है मां दुर्गा की उत्पत्ति की कहानी। राक्षसराज महिषासुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठाकर तप किया। उसकी आस्था देख ब्रह्मा जी ने उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने उनसे वरदान मांगा कि वो जब चाहे तब विकराल भैंसे का रूप धारण कर सके। कोई भी देवता या दानव उसे युद्ध में हरा नहीं पाएगा। वरदान मिलने से महिषासुर बलशाली होने के साथ ही अंहकारी भी हो गया था। उसने स्वर्ग पर हमला किया और देवताओं को हराकर कब्जा कर लिया था। भगवान शिव और भगवान विष्णु भी उसकी शक्तियों के आगे परास्त हो गए।
महिषासुर के अंत के लिए देवताओं के तेज से प्रकट हुई शक्ति
महिषासुर के अत्याचार बढ़ने लगे, उसमें अपराजेय होने का अहंकार आ गया। उसके आतंक से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि होने लगी। तब भगवान शिव और भगवान विष्णु ने सभी देवताओं से सलाह की और महिषासुर का वध करने के उद्देश्य से एक शक्ति को प्रकट करने की योजना बनाई। तब भगवान शिव-विष्णु और सभी देवी-देवताओं के तेज से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई। सभी देवताओं की शक्तियों को एकसाथ एक जगह इकट्ठा करने से एक आकृति की उत्पत्ति हुई।
समस्त देवताओं के इस तेज को शिवजी ने त्रिशुल, विष्णु जी ने चक्र, ब्रह्मा जी ने कमल का फूल, वायु देवता से नाक व कान, पर्वतराज हिमालय से कपड़े और शेर मिला। यमराज के तेज से मां शक्ति के केश बने, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, प्रजापति से दांत और अग्रिदेव से आंखें मिली। इसके साथ ही देवी भगवती को समुद्र से दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, हार, कंगन, पैरों के नूपुर, दो कुंडल और अंगुठियां प्राप्त हुईं। जैसे ही मां ने इन सभी अस्त्र-शस्त्र और अन्य दिव्य वस्तुओं को धारण किया, उनका स्वरूप असुरों में भय पैदा करने वाला था। मां के पास ऐसी शक्तियां थी, जो किसी दूसरे के पास नहीं थी। इन अपार शक्तियों की वजह से ही वह आदिशक्ति कहलाईं। उनके पास वो शक्तियां थीं जिसका कोई अंत नहीं दिखाई पड़ रहा था।
9 दिनों तक चले युद्ध के बाद 10वें दिन किया महिषासुर का वध
पुराणों के मुताबिक, देवताओं के तेज और शस्त्र पाकर जो देवी प्रगट हुईं, वो तीनों लोकों में अजेय और दुर्गम बनी। इसके बाद शक्ति और महिषासुर के बीच 9 दिन तक युद्ध हुआ। नौवें दिन उस शक्ति ने महिषासुर का वध कर दिया। युद्ध में बहुत भंयकर और दुर्गम होने के कारण इनका नाम शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा पड़ा। जिन नौ दिनों तक मां दुर्गा ने महिषासुर के साथ युद्ध किया, वही आज नवरात्र के तौर पर मनाए जाते हैं।
भगवान श्रीराम ने त्रेता युग में सबसे पहले की थी नवरात्र की पूजा
चार वेदों के से ऋग्वेद में देवी ऊषा, वाक और दुर्गा जैसी देवियों के बारे में बताया गया है। देवी सूक्त में देवी को सभी देवतों की शक्ति कहा गया है। इसके अलावा वाल्मीकि पुराण में नवरात्रि व्रत का महत्व बताया गया है। इसमें बताई गई कथा के मुताबिक, त्रेतायुग में सबसे पहले श्रीराम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक परमशक्ति महिषासुरमर्दिनी देवी दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की थी। इसके बाद दशमी तिथि को उन्होंने लंका जाकर रावण का वध किया था। श्रीराम ने माता देवी से अध्यात्मिक बल, शत्रु पराजय और कामना पूर्ति का आर्शीवाद लिया। इस आधार पर कहा जा सकता है कि नवरात्रि का व्रत सबसे पहले श्रीराम ने रखा था।