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Vaishno Devi: किसने की थी वैष्णो माता के मंदिर की खोज, कैसे शुरू हुई थी यात्रा; जानिए पूरा इतिहास

Vaishno Devi News: 700 साल पहले पंडित श्रीधर द्वारा खोजे गए वैष्णो देवी मंदिर की कहानी, अर्द्धकुंवारी गुफा में माता की तपस्या से लेकर रोपवे प्रोजेक्ट तक की आधुनिक यात्रा। जानिए इस पवित्र स्थल का पूरा इतिहास और वर्तमान सुविधाएं।

अपडेटेड May 10, 2025 पर 10:53 PM
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माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए कटरा रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे कनेक्शन है।

Vaishno Devi News: माता वैष्णो देवी मंदिर देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। जम्मू-कश्मीर के कटरा स्थित यह मंदिर त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए करीब 14 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। इस धार्मिक यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों में से एक है अर्द्धकुंवारी मंदिर, जिसे गर्भजून गुफा के नाम से भी जाना जाता है।

अर्द्धकुंवारी मंदिर की धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता वैष्णो देवी ने अर्द्धकुंवारी की गुफा में लगभग 9 महीने तक तपस्या की थी। माना जाता है कि इस गुफा के दर्शन करने से भक्तों को जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। यह गुफा आकार में संकरी जरूर है, लेकिन मान्यता है कि यहां हर भक्त सहजता से प्रवेश कर सकता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पवित्र स्थल के दर्शन से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।


वैष्णो मंदिर की खोज किसने की थी

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुताबिक, वैष्णो देवी की उत्पत्ति और किंवदंती के बारे में अलग-अलग संस्करण प्रचलित हैं, लेकिन लगभग 700 साल पहले पंडित श्रीधर द्वारा मंदिर की खोज पर सभी एकमत हैं, जिनके स्थान पर माता ने भंडारा आयोजित करने में मदद की थी।

श्रीधर का भंडारा और भैरव नाथ का वध

पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीधर नाम के एक भक्त को वैष्णो माता ने कन्या रूप में दर्शन दिए और भंडारा आयोजित करने को कहा। श्रीधर ने माता के आशीर्वाद से भंडारा किया। इसमें घोर तांत्रिक भैरव नाथ भी शामिल हुए। भैरव नाथ ने मांस और मदिरा की मांग की, जिसे माता ने ठुकरा दिया। इसके बाद भैरव नाथ ने माता का पीछा किया।

माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रिकुट पर्वत की ओर प्रस्थान किया और मार्ग में हनुमान जी भी उनकी रक्षा में साथ थे। जब हनुमान जी को प्यास लगी, तो माता ने अपने धनुष-बाण से पहाड़ से जलधारा निकाली, जो बाद में बाणगंगा के नाम से प्रसिद्ध हुई।

इसके बाद माता ने अर्द्धकुंवारी गुफा में तपस्या की और अंत में भैरव नाथ का गुफा के पास वध कर दिया। मरते समय भैरव नाथ ने क्षमा मांगी। उसके बाद वैष्णो माता ने आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन करेगा, उसे भैरव नाथ मंदिर जाना अनिवार्य होगा, अन्यथा यात्रा अधूरी मानी जाएगी।

श्रीधर ने माता वैष्णो का मंदिर कैसे खोजा

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुताबिक,भंडारे के दौरान जब माता वैष्णो देवी ने भैरव नाथ के अत्याचारों से बचने के लिए अपना रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर प्रस्थान किया, तो पीछे रह गए पंडित श्रीधर गहरे दुख में डूब गए। उन्हें लगा जैसे उनके जीवन का केंद्र ही उनसे छिन गया हो। उन्होंने ना भोजन किया, ना जल ग्रहण किया और खुद को अपने घर के एक कमरे में बंद कर लिया। वे दिन-रात माता के दोबारा प्रकट होने की प्रार्थना करने लगे।

इसी गहन तपस्या और भक्ति के बीच माता वैष्णवी एक रात उनके स्वप्न में प्रकट हुईं। उन्होंने श्रीधर से कहा कि वे त्रिकूट पर्वत की गहराइयों में स्थित एक पवित्र गुफा में निवास कर रही हैं, और उन्हें वहां आकर दर्शन करने के लिए कहा। माता ने उन्हें पवित्र गुफा का मार्ग दिखाया और उपवास तोड़ने का आग्रह भी किया।

प्रेरित होकर पंडित श्रीधर पर्वतों में निकल पड़े। राह कठिन थी और कई बार उन्हें लगा कि वे दिशा भूल गए हैं, लेकिन हर बार उनका स्वप्न मार्गदर्शक बनकर सामने आ जाता। अंततः वे उस गुफा तक पहुंच गए, जहां उन्हें एक विशेष चट्टान दिखाई दी - जिस पर तीन सिर उभरे हुए थे।

यही वह क्षण था जब माता ने अपनी दिव्य महिमा में प्रकट होकर श्रीधर को दर्शन दिए। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस गुफा में माता महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली की त्रिविध शक्तियां एक साथ प्रकट हुईं और पवित्र चट्टान के तीन सिरों को पवित्र पिंडियों के रूप में दर्शन दिया।

माता ने श्रीधर को चार पुत्रों का आशीर्वाद दिया और उन्हें यह अधिकार प्रदान किया कि वे इस पवित्र स्थल की पूजा कर सकें। साथ ही, उन्हें यह भी कहा गया कि वे इस तीर्थस्थल की महिमा को जन-जन तक पहुंचाएं।

पंडित श्रीधर ने माता के आदेश का पालन करते हुए अपना शेष जीवन इसी गुफा में सेवा, भक्ति और प्रचार में समर्पित कर दिया।

वैष्णो देवी कैसे पहुंचे

  1. रेल मार्ग से यात्रा: माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए कटरा रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे कनेक्शन है। यह स्टेशन दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, जम्मू सहित देश के कई प्रमुख शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है।
  2. हवाई मार्ग से यात्रा: जम्मू एयरपोर्ट वैष्णो देवी का सबसे पास का हवाई अड्डा है, जो कटरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां से कटरा तक पहुंचने के लिए टैक्सी और बस सेवाएं आसानी से उपलब्ध रहती हैं।
  3. सड़क मार्ग से यात्रा: कटरा तक देश के कई हिस्सों से सड़क मार्ग द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। नेशनल हाईवे और नियमित बस सेवाएं इसे सुगम बनाती हैं।

कटरा से भवन (मंदिर) तक कैसे जाएं

  • पैदल यात्रा: कटरा से वैष्णो देवी भवन तक की दूरी लगभग 12 से 13 किलोमीटर है। यह यात्रा पक्के ट्रैक से होती है और पूरी तरह सुविधाजनक है।
  • यात्रा पंजीकरण (यात्रा पर्ची): मंदिर की यात्रा शुरू करने से पहले कटरा में यात्रा पर्ची (यात्रा परमिट) लेना अनिवार्य है। यह परमिट कटरा के यात्रा पंजीकरण काउंटर से मुफ्त में प्राप्त किया जा सकता है।

विशेष सुविधाएं और वैकल्पिक साधन

  1. घोड़े और पालकी: वरिष्ठ नागरिकों या जिन यात्रियों के लिए पैदल चलना कठिन है, उनके लिए घोड़े और पालकी की व्यवस्था उपलब्ध है।
  2. बैटरी कार सेवा: अर्द्धकुंवारी से भवन तक बैटरी चालित वाहन (बैटरी कार) भी चलती है, जिसे खासतौर पर वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजनों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  3. हेलीकॉप्टर सेवा: कटरा से सांझीछत तक हेलीकॉप्टर सेवा उपलब्ध है। वहां से भवन तक पहुंचने के लिए लगभग 2.5 किलोमीटर पैदल चलना होता है।

वैष्णो देवी यात्रा होगी और आसान

माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए कटरा से भवन तक की यात्रा को सरल और समय-संक्षिप्त बनाने के उद्देश्य से ₹300 करोड़ की लागत से एक आधुनिक रोपवे परियोजना शुरू की गई है। यह रोपवे कटरा से सांझीछत तक बनाया जाएगा, जिससे तीर्थयात्रियों को मौजूदा लंबी और कठिन चढ़ाई से राहत मिलेगी।

वर्तमान में भक्तों को वैष्णो देवी भवन तक पहुंचने में बिना रुके पैदल चलने पर 6 से 7 घंटे लगते हैं। घोड़े या पालकी से यात्रा करने पर भी यह सफर करीब 4 घंटे का होता है। वहीं, हेलीकॉप्टर सेवा का विकल्प मौजूद होने के बावजूद, यात्रियों को सांझीछत से भवन तक 2.5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

रोपवे बनने के बाद यह लंबा सफर घटकर सिर्फ 1 घंटे में पूरा किया जा सकेगा। इस परियोजना के पूर्ण होने पर तीर्थयात्रियों को न केवल समय की बचत होगी, बल्कि वरिष्ठ नागरिकों और असहाय यात्रियों के लिए यह सुविधा विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगी।

श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार, यह रोपवे भविष्य में वैष्णो देवी यात्रा के अनुभव को पूरी तरह बदल देगा और वार्षिक तीर्थयात्रियों की संख्या में भी इजाफा होने की संभावना है। इस रोपवे के अगले साल यानी 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है।

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First Published: May 10, 2025 10:53 PM

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