Vijayadashami 2025: बुराई पर अच्छी की और अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व है विजयादशमी। हर साल ये त्योहार अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से कई पौराणिक कथाएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। दशहरा के दिन एक साथ एक ओर जहां भक्त नौ दिनों तक मां दुर्गा की उपासना करने के बाद उनकी विदाई और फिर विसर्जन करते हैं। तो दूसरी तरफ, इसी दिन शस्त्र पूजा, देवी अपराजिता पूजा और शमी पूजा की जाती है। त्रेता युग में भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया और उससे पहले पौराणिक काल में मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसी के प्रतीक स्वरूप दशहरे के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन करने की भी परंपरा है। आज हम आपको दशहरे के दिन की जाने वाली शमी पूजा और उसका महत्व बता रहे हैं।
इन मंत्रों के साथ करें शमी की पूजा
इस दिन शमी वृक्ष के मंत्र, ‘शमी शमी महाशक्ति सर्वदुःख विनाशिनी। अर्जुनस्य प्रियं वृक्षं शमी वृक्षं नमाम्यहम्॥' को भी पढ़ते हैं।
शमी के पत्तों को कहत हैं सोना
माना जाता है कि शमी के पत्ते असली सोने की तरह शुभ होते हैं। इन्हें घर के पूजाघर या तिजोरी में रखने मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है और धन-समृद्धि बढ़ती है। आज के दिन महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में शमी के पत्ते बांटे जाते हैं, वहां इसे सोना बांटना कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शमी वृक्ष शनि ग्रह का प्रिय है। दशहरे पर शमी की पूजा करने से शनि दोष शांत होता है। करियर और कारोबार में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। शमी की नियमित पूजा से शत्रुओं पर विजय मिलती है और जीवन में स्थिरता आती है।
शमी की पूजा को युद्ध और विजय से जोड़ा जाता है, क्योंकि लोककथाओं के अनुसार रावण ने भगवान राम से युद्ध से पहले शमी की पूजा की थी। दक्षिण भारत में आज भी दशहरे पर लोग शमी की पूजा कर युद्ध या कार्य की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
द्वापर युग में पांडवों ने शमी वृक्ष में छुपाए थे शस्त्र
द्वापर युग में जब पांडवों को अज्ञातवास में जाना पड़ा था, तो उन्होंने अपने सभी शस्त्र शमी के पेड़ में छिपा दिए थे। बारह साल बाद जब वे लौटे तो उनके शस्त्र वैसे ही सुरक्षित मिले।