कोलकाता की एक महिला की जिंदगी पहले ही मुश्किलों से भरी थी, लेकिन किस्मत का ऐसा खेल हुआ कि उनका सबसे बड़ा सहारा ही उन्हें बेसहारा छोड़ गया। एक गंभीर हादसे में महिला के सिर में चोट लगी, जिसके बाद कई सर्जरी कराई गईं। उनकी जान तो बच गई, लेकिन शरीर का आधा हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। मुश्किलों का पहाड़ यहीं खत्म नहीं हुआ—पति, जो कभी साथ निभाने का वादा कर चुका था, इलाज का खर्च बढ़ता देख महिला को अस्पताल में ही छोड़कर चला गया। अब स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि अस्पताल भी उनके इलाज और देखभाल में असमर्थता जता रहा है।
मामला अदालत में पहुंच चुका है, जहां पति की गैर-जिम्मेदारी और महिला की देखभाल को लेकर कानूनी लड़ाई जारी है। सवाल ये है—क्या इस महिला को न्याय मिलेगा, या फिर उसे जिंदगीभर इस बेबसी के साथ जीना होगा?
कैसे बदली इस महिला की जिंदगी?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ये मामला सितंबर 2021 का है, जब महिला को गंभीर सिर में चोट लगने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कई सर्जरी के बाद उनकी जान तो बच गई, लेकिन शरीर ने उनका साथ देना बंद कर दिया। उनकी हालत स्थिर होने के बावजूद, उनके पति जयप्रकाश गुप्ता ने उन्हें घर ले जाने से इनकार कर दिया।
अस्पताल ने जब पति से संपर्क किया तो कोई जवाब नहीं मिला। आखिरकार, अस्पताल ने मई 2023 में पश्चिम बंगाल क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमीशन से शिकायत की और फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया। जब कोर्ट में जस्टिस अमृता सिन्हा ने गुप्ता से सवाल किया तो उसने सफाई दी, "मैं एक छोटी-सी दुकान चलाता हूं, पत्नी की देखभाल के लिए मेरे पास न संसाधन हैं, न सहारा।"
अस्पताल की ओर से पेश वकील ने बताया कि महिला का इलाज और कई सर्जरी की गईं, लेकिन उनके स्वास्थ्य बीमा की 6 लाख की राशि बहुत पहले खत्म हो चुकी थी। अब बकाया बिल 1 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि पति ने इस दौरान एक नया परिवार बसा लिया।
जस्टिस सिन्हा ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एडवोकेट जनरल और पति जयप्रकाश गुप्ता को 9 अप्रैल को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। हालांकि, उन्होंने पति-पत्नी के रिश्ते पर टिप्पणी करने से परहेज किया। सरकारी वकील का कहना है कि सरकार के पास मुफ्त शेल्टर होम्स हैं, लेकिन वहां गंभीर बीमार मरीजों की देखभाल करने वाले प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं होते।