Indian Railways: जब नहीं था AC, तब भी ट्रेन के कोच बर्फ की तरह रहते थे ठंडे, जानें कैसे
Indian Railways: गर्मी के मौसम में स्लीपर और जनरल कोच में यात्रा करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है कि जब ट्रेनों में एसी कोच नहीं होते थे, तब राजा-महाराजा और ब्रिटिश अधिकारी किस तरह सफर करते थे? उस समय गर्मी से बचने के लिए कौन-कौन से खास उपाय किए जाते थे? आइए जानते हैं
Indian Railways: गर्मी से राहत देने के लिए 1872 में भारतीय रेलवे ने पहली बार एयर कूलिंग सिस्टम की शुरुआत की।
भारतीय रेलवे का सफर समय के साथ बेहद रोमांचक बदलावों से गुजरा है। एक दौर था जब ट्रेनें कोयले से चलती थीं और गर्मी में सफर करना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। ना पंखे थे, ना एसी—यात्रियों को भीषण गर्मी से जूझना पड़ता था। राजा-महाराजाओं और अमीर तबके के लिए खास इंतजाम किए जाते थे, लेकिन आम लोगों के लिए यह सफर चुनौती भरा होता था। जैसे-जैसे तकनीक ने रफ्तार पकड़ी, रेलवे में सुविधाएं जुड़ती गईं। आज भारतीय ट्रेनों में अत्याधुनिक एसी कोच मौजूद हैं, जो सफर को सुहाना और आरामदायक बनाते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब ट्रेन में एसी नहीं था, तब लोग गर्मी से कैसे बचते थे? भारत में पहली बार कब और कहां एसी कोच की शुरुआत हुई थी? आइए जानते हैं भारतीय रेलवे में एसी के रोमांचक सफर की पूरी कहानी।
जब ट्रेनों में ठंडक का कोई इंतजाम नहीं था
1853 में जब भारत में पहली ट्रेन चली, तब उसमें गर्मी से बचने का कोई ठोस उपाय नहीं था। ब्रिटिश अधिकारी, राजा-महाराजा और आम यात्री सबको भीषण गर्मी झेलनी पड़ती थी। लंबी यात्राओं के दौरान गर्मी असहनीय हो जाती थी। खासतौर पर भारत की चिलचिलाती गर्मी में सफर करना किसी तपस्या से कम नहीं था।
1872 में शुरू हुआ पहला ‘एयर कूलिंग सिस्टम’
गर्मी से राहत देने के लिए रेलवे ने 1872 में एयर कूलिंग सिस्टम शुरू किया। ये सुविधा केवल फर्स्ट क्लास के कोचों में दी जाती थी, जहां राजा-महाराजा और उच्च वर्ग के लोग सफर करते थे। इस तकनीक से ट्रेनों को ठंडा बनाए रखने की कोशिश की गई और यह सिस्टम करीब 64 साल तक चला।
कैसे ठंडी होती थीं ट्रेनें?
जब ट्रेनों में एसी की सुविधा नहीं थी, तब यात्रियों को गर्मी से राहत देने के लिए एक अनोखी तकनीक अपनाई जाती थी। ट्रेन के कोचों के निचले हिस्से में विशेष सीलबंद बॉक्स बनाए जाते थे, जिनमें बड़े-बड़े बर्फ के ब्लॉक रखे जाते थे। ट्रेन में लगे ब्लोअर सिस्टम के जरिए हवा को इन बर्फीले बॉक्सों से गुजारा जाता था, जिससे ठंडी हवा कोच के अंदर फैलती थी और सफर थोड़ा आरामदायक हो जाता था। लंबी दूरी की ट्रेनों में इस ठंडक को बनाए रखने के लिए हर कुछ घंटों में बर्फ बदली जाती थी। ये प्रक्रिया तब तक जारी रहती, जब तक ट्रेन अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाती। ये तकनीक भले ही आधुनिक एसी जितनी प्रभावी न रही हो, लेकिन उस दौर में यात्रियों के लिए ये किसी राहत से कम नहीं थी।
भारत में पहली बार कब और कहां आया AC कोच?
1936 में भारत में पहली बार एसी कोच बनाया गया। हालांकि, इस पर काफी पहले से काम चल रहा था। शुरुआती दौर में ये सुविधा केवल फर्स्ट क्लास के कुछ विशेष कोचों तक ही सीमित थी। उस समय चलती ट्रेन में एसी का संचालन किसी चमत्कार से कम नहीं था।
देश की पहली पूरी AC ट्रेन
1936 से 1956 तक केवल चुनिंदा ट्रेनों में ही एसी कोच लगाए जाते थे। लेकिन 1956 में पहली बार भारतीय रेलवे ने पूरी ट्रेन को एसी युक्त बनाया, जो दिल्ली से हावड़ा के बीच चलाई गई। ये भारतीय रेलवे के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि थी।
थर्ड AC कोच का सफर
शुरुआत में एसी कोच केवल फर्स्ट और सेकेंड क्लास के यात्रियों के लिए थे। लेकिन जब रेलवे ने देखा कि आम जनता भी आरामदायक सफर चाहती है, तो थर्ड एसी कोच पर काम शुरू हुआ।
1988 में भारत में पहली बार शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत हुई।
इसके बाद 1993 में थर्ड एसी कोच को भी ट्रेनों में शामिल किया गया।
इससे आम जनता के लिए भी एसी कोच का सफर किफायती और सुलभ हो गया।
आज के आधुनिक AC कोच
आज भारतीय रेलवे में अत्याधुनिक एसी कोच मौजूद हैं, जो यात्रियों को बेहतरीन सुविधाएं प्रदान करते हैं।
अब ट्रेनों में स्मार्ट क्लाइमेट कंट्रोल सिस्टम हैं, जो तापमान को नियंत्रित रखते हैं।
नए एलएचबी कोच अधिक सुरक्षित और आरामदायक होते हैं।
वंदे भारत, तेजस और राजधानी जैसी ट्रेनों में अत्याधुनिक एसी सुविधाएं दी जा रही हैं।
भारतीय रेलवे ने लंबा सफर तय किया है, और भविष्य में और भी अधिक आरामदायक और आधुनिक ट्रेनों की उम्मीद की जा रही है। अब यात्रियों को गर्मी से परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ट्रेन का सफर पहले से कहीं ज्यादा शानदार और आरामदायक हो चुका है।