राजगिरा हमारी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। राजगिरा को ऐमारैंथ भी कहा जाता है। ये भारत में लंबे समय से लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना रहा है। राजगिरा की खासियत होती है कि इसमें उच्च गुणवत्ता वाला लाइसिन प्रोटीन, ग्लूटेन-फ्री स्टार्च, दूध से तीन गुना ज्यादा कैल्शियम और पालक जितना आयरन पाया जाता है। यही वजह है कि उपवास के समय इसे ताकत और सेहत का अच्छा स्रोत माना जाता है। एक समय में इसे "शाही अनाज" भी कहा जाता था।
धीरे-धीरे समय के साथ राजगिरा आम खाने से दूर होता गया और इसे सिर्फ उपवास का भोजन या गरीबों का अनाज समझकर नजरअंदाज कर दिया जाने लगा। लेकिन अब यही प्राचीन अनाज फिर से लौट रहा है और दुनिया भर में ग्लूटेन-फ्री, प्रोटीन से भरपूर सुपरफूड के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।
2000 के दशक में बड़ी मांग
20वीं सदी में राजगिरा ज्यादातर मंदिरों, व्रतों और ग्रामीण खाने तक ही सीमित था। शहरों में लोग इसे सिर्फ नवरात्रि या एकादशी पर लड्डू और रोटियों के रूप में खाते थे। लेकिन 2000 के दशक में जब पोषण एक्सपर्ट ने इसे क्विनोआ के नेचुरल ऑप्शन के तौर पर प्रचारित किया। इसके बाद यह धीरे-धीरे लोगों की डाइट का हिस्सा बन गया और अब नाश्ते के सीरियल, एनर्जी बार, कुकीज से लेकर पास्ता तक में इस्तेमाल किया जाने लगा है।
आज बड़ी खाद्य कंपनियां राजगिरा को पादप प्रोटीन से भरपूर एक खास अनाज बताकर बेच रही हैं। दिलचस्प बात ये है कि जहां भारत इसे सदियों से उगा रहा है, वहीं हाल के सालों में इसकी सबसे ज्यादा मांग विदेशों से आ रही है। साल 2022 में राजगिरा का निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा और अमेरिका, यूरोप व जापान इसके बड़े खरीदार बने। अब राजगिरा से बने स्नैक्स और ग्लूटेन-फ्री मिक्स की बढ़ती डिमांड छोटे किसानों को अतिरिक्त कमाई का नया मौका दे रही है। अब लोग इसे सिर्फ उपवास नहीं बल्कि फिटनेस और सेहत से जुड़ा अनाज मानते हैं।
व्रत और त्योहारों में खाया जाता था
उत्तराखंड और हिमाचल में राजगिरा को पवित्र अनाज माना जाता था, जिसे नवरात्रि जैसे व्रत-त्योहारों पर प्रसाद और ताकत के प्रतीक के रूप में खाया जाता था। आज किसान इसे रामदाना लड्डू बनाकर हिमालयी सुपरफूड के नाम से बेच रहे हैं, जबकि कई राज्यों में इसका आटा ऑर्गेनिक दुकानों पर साधारण गेहूं से महंगा बिकता है।
बारिश वालों इलाकों में होती है खेती
अपनी खूबियों के बावजूद राजगिरा को आज भी भारतीय खेती में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है। यह सरकारी अनाज खरीद प्रणाली में शामिल नहीं है, इसलिए किसान इसे सिर्फ छोटे पैमाने पर उगाते हैं। अगर बीज बैंकों, किसान समूहों और जीआई-टैग जैसी पहल से सहयोग मिले, तो इसका उत्पादन और पहचान दोनों बढ़ सकते हैं। भारतीय किसानों के लिए खासकर बारिश पर निर्भर इलाकों में राजगिरा बड़ी उम्मीद बन सकता है, क्योंकि इसे कम साधनों में उगाया जा सकता है। यह ज्यादा पोषण देता है और बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है।