ये दुनिया अजीबोगरीब जगहों से भरी पड़ी है, लेकिन कुछ जगहें इतनी अनोखी होती हैं कि दिमाग भी चकरा जाए। सोचिए, अगर आपको रोज अपने ही घर में रहते हुए एक नहीं बल्कि दो देशों की सैर करनी पड़े, तो कैसा लगेगा? सुनकर फिल्मी लगता है, लेकिन ये हकीकत है। पूर्वोत्तर भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां लोग कभी भारत में होते हैं तो अगले ही पल म्यांमार में। यहां बॉर्डर कोई दीवार नहीं, बल्कि जिंदगी का हिस्सा है इतना सामान्य कि लोग इसे लेकर हैरान भी नहीं होते। एक देश में खाना, दूसरे में सोना, और बिना पासपोर्ट-वीजा की झंझट के रोज दो देशों की नागरिकता का मजा लेना
ये सब किसी सपने जैसा लगता है। ये गांव सिर्फ अपनी भौगोलिक स्थिति से ही खास नहीं, बल्कि यहां की संस्कृति, परंपराएं और अनोखी कहानियां भी इसे दुनिया के सबसे दिलचस्प स्थानों में शामिल करती हैं।
घर भारत में, रसोई म्यांमार में
लोंगवा गांव का आधा हिस्सा भारत में और आधा हिस्सा म्यांमार में है। साल 1970-71 में जब बॉर्डर खींची गई, तब ये गांव दो हिस्सों में बंट गया। यहां कई परिवार ऐसे हैं जिनका बेडरूम म्यांमार में और किचन भारत में है। कोई खेती करने भारत आता है तो वापस म्यांमार में जाकर आराम करता है। यहां के लोग कहते हैं – “हम दो देशों के बीच रहते हैं, लेकिन हमारी जिंदगी एक ही है।”
वीजा-पासपोर्ट की कोई जरूरत नहीं
लोंगवा गांव के लोगों को भारत और म्यांमार दोनों की नागरिकता मिली हुई है। इसी वजह से यहां आने-जाने के लिए वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। इनकी दुनिया में बॉर्डर का मतलब बस नक्शे तक ही सीमित है, हकीकत में नहीं।
लोंगवा गांव के लोग कोन्याक जनजाति से आते हैं। पुराने समय में इन्हें ‘हेड हंटर्स’ कहा जाता था। ये अपने दुश्मनों के सिर काटकर उन्हें जीत की निशानी मानते थे। हालांकि 1940 के दशक में इस प्रथा पर रोक लग गई और अब ये जनजाति शांतिप्रिय और मेहमाननवाज मानी जाती है।
राजा की 60 पत्नियां और बड़ा परिवार
इस गांव के राजा को वंशानुगत नाम ‘द अंग’ दिया जाता है। कहते हैं कि इस राजा की एक-दो नहीं, बल्कि 60 पत्नियां हैं। राजा का बेटा म्यांमार आर्मी में है। ‘द अंग’ के अधीन कुल 75 गांव आते हैं, जिनमें से कुछ नागालैंड, कुछ म्यांमार और कुछ अरुणाचल प्रदेश में हैं।
लोंगवा गांव सिर्फ संस्कृति के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी मशहूर है। यहां से शिलाई झील, डोयांग नदी, नागालैंड साइंस सेंटर और हांगकांग मार्केट जैसी जगहों पर घूमने का मौका मिलता है। यह गांव पहाड़ों और जंगलों के बीच बसा है और यहां की हवा और नजारे मन को सुकून दे देते हैं।
सच में सीमाओं से परे जिंदगी
लोंगवा गांव ये साबित करता है कि सीमाएं इंसानों को नहीं, नक्शों को बांटती हैं। यहां के लोग रोजमर्रा की जिंदगी ऐसे जीते हैं जैसे दो देश एक ही मोहल्ला हों। वे कहते हैं – “हमें किसी पासपोर्ट की जरूरत नहीं, हमारी दोस्ती और रिश्ते ही हमारी पहचान हैं।”