सरकारी स्कूल की दीवार पर सिर्फ चार लीटर पेंट लगाने के लिए 168 मजदूर और 65 राजमिस्त्री लगाए गए! जी हां, आप चौंकिए मत — ये कोई गणित का सवाल नहीं, मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में हुए एक वास्तविक और चौंकाने वाले घोटाले की कहानी है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए बिलों ने सरकारी तंत्र की पोल खोल दी है। ब्योहारी विधानसभा क्षेत्र से जुड़े एक सरकारी स्कूल में सिर्फ चार लीटर ऑइल पेंट लगाने पर ₹1.07 लाख खर्च दिखाया गया। वहीं, निपनिया गांव के एक अन्य स्कूल में 20 लीटर पेंट के नाम पर ₹2.30 लाख खर्च किए गए। लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
पेंटिंग से ज्यादा मेहनत बिलों पर!
सकंडी गांव के स्कूल की दीवार पर 4 लीटर पेंट लगाने के लिए 168 मजदूर और 65 मिस्त्री, जबकि निपनिया के स्कूल की 10 खिड़कियों और 4 दरवाजों को रंगने के लिए 275 मजदूर और 150 मिस्त्री तैनात किए गए थे — कम से कम कागजों में तो ऐसा ही है।
और असली 'कलाकारी' तो बिल बनाने और मंजूरी में दिखाई गई। निर्माण कार्य करने वाली "सुधाकर कंस्ट्रक्शन" नाम की कंपनी ने 5 मई 2025 को बिल बनाया, लेकिन उसे एक महीना पहले ही, 4 अप्रैल को ही स्कूल प्रिंसिपल से मंजूरी भी मिल गई थी। यही नहीं, जहां नियमों के अनुसार "काम से पहले और बाद की फोटो" देना जरूरी है, वहां बिना किसी फोटो के ही बिल पास कर दिए गए।
जैसे ही ये घोटालेबाजी सोशल मीडिया पर वायरल हुई, मामला तेजी से तूल पकड़ने लगा। जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मारपाची ने कहा, "इन दोनों स्कूलों के बिल सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जांच चल रही है, और जो भी तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।"
यह मामला न सिर्फ सरकारी पैसे की बर्बादी का जीता-जागता उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि कागजों पर कैसे चमत्कारिक तरीके से काम दिखाकर लाखों की लूट की जा सकती है। अब देखना यह होगा कि जांच के बाद किस-किस की गर्दन फंसती है — पेंट करने वालों की या पैंतरेबाजों की।