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जानिए कहां है वो गांव जहां आज भी रावण के नाम पर बहते हैं आंसू

Ravan Village: जब पूरा देश दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है, तब उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव में कुछ ऐसा होता है कि आप दंग रह जाएंगे। यहां दशहरा मनाने का तरीका बिल्कुल अलग है—रावण को जलाने की जगह उसकी विद्वता और ज्ञान के लिए पूजा होती है

अपडेटेड Oct 02, 2025 पर 11:52 AM
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Ravan Village: बिसरख की ये अनूठी परंपरा हमें भारत की सांस्कृतिक विविधता की याद दिलाती है।

जब पूरा देश दशहरे पर रावण के पुतले जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में दशहरा एकदम अलग ढंग से मनाया जाता है। इस गांव में लोग रावण को बुराई का प्रतीक मानकर नहीं जलाते, बल्कि उसकी विद्वता, ज्ञान और पौराणिक महत्व के लिए पूजा करते हैं। कहा जाता है कि बिसरख रावण की जन्मस्थली है, इसलिए यहां के लोग उसे अपने पूर्वज और आदर्श मानते हैं। दशहरे के दिन यहां शोक और सम्मान का माहौल होता है।

गांव में रावण की मूर्ति रखकर हवन और पूजा की जाती है, लेकिन उसका दहन नहीं होता। ये परंपरा दिखाती है कि भारत की संस्कृति में एक ही पात्र को अलग नजरिए से देखा जा सकता है जहां एक जगह बुराई का प्रतीक है, वहीं दूसरी जगह ज्ञान और विद्वता का आदर्श।

बिसरख का इतिहास


स्थानीय मान्यताओं और पुरातात्विक साक्ष्यों के मुताबीक, बिसरख का नाम रावण के पिता ऋषि विश्रवा के नाम पर पड़ा। प्राचीनकाल में इसे 'विश्वेशरा' कहा जाता था, जो समय के साथ बिसरख में बदल गया। शिवपुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में यहीं ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ और उन्होंने गांव में एक स्वयं प्रकट शिवलिंग की स्थापना की। यही स्थान रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और सूपर्णखा का जन्मस्थान भी है।

दशहरे पर अनोखी पूजा

बिसरख की सबसे खास परंपरा दशहरे का मनाने का तरीका है। जहां देशभर में रावण दहन  धूमधाम से होती है, वहीं बिसरख में लोग शोक व्यक्त करते हैं। यज्ञशाला में रावण की मूर्ति रखकर हवन और पूजा की जाती है, लेकिन उसे नहीं जलाया जाता। गांववाले रावण को अपने पूर्वज और आदर्श मानते हैं। स्थानीय निवासी बताते हैं कि, "हम रावण को अपने बाबा मानते हैं, इसलिए उनकी पूजा होती है।"

विविधता में एकता का प्रतीक

बिसरख की ये अनूठी परंपरा हमें भारत की सांस्कृतिक विविधता की याद दिलाती है। एक ही पात्र रावण को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता है कहीं वो बुराई का प्रतीक है, तो वहीं कहीं ज्ञान और विद्वता का प्रतीक। ये परंपरा ये संदेश देती है कि हमारी संस्कृति में इतिहास, आस्था और जिज्ञासा का अद्भुत संगम है।

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