सांपों को लेकर तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हैं। कई बार लोग मानते हैं कि सांप गिरगिट की तरह तुरंत रंग बदल सकते हैं या अपने दुश्मनों को धोखा देने के लिए अलग-अलग रंग धारण कर लेते हैं। असल में सच्चाई थोड़ी अलग है। सांपों में रंग बदलने की क्षमता तो होती है, लेकिन ये बेहद धीमी और सीमित होती है। ये बदलाव उनके आस-पास के माहौल, मौसम, शरीर के तापमान और स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ प्रजातियां जैसे गार्टर स्नेक, ब्रॉन्ज बैक और वाइन स्नेक हल्का रंग बदलने में सक्षम होती हैं, जबकि कुछ ज़हरीले सांप जैसे इनलैंड ताइपन इस गुण में भी आगे हैं।
ये प्राकृतिक प्रक्रिया उन्हें छिपने, शिकार करने और मौसम के हिसाब से शरीर को संतुलित रखने में मदद करती है। हालांकि, गांव-कस्बों में फैली कहानियों के विपरीत, ये बदलाव न तो तुरंत होता है और न ही किसी बदले की भावना से प्रेरित होता है।
किन सांपों में दिखती है रंग बदलने की क्षमता?
गार्टर स्नेक, ब्रॉन्ज बैक और वाइन स्नेक जैसे प्रजातियों में हल्का रंग बदलने का गुण पाया जाता है। वहीं, दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक इनलैंड ताइपन अपने रंग बदलने की इस कला में भी माहिर माना जाता है।
रंग बदलने के पीछे का असली कारण क्या है?
सांप अपने शिकारियों से बचने और शिकार पर हमला करने के लिए माहौल के मुताबिक रंग बदल सकते हैं। ठंड के मौसम में वे अपना रंग गहरा कर लेते हैं ताकि ज्यादा गर्मी अवशोषित कर सकें। तनाव या बीमारी की स्थिति में भी सांपों के रंग में बदलाव देखा गया है।
गांवों में ये मान्यता है कि सांप दुश्मनों से बदला लेने या उन्हें धोखा देने के लिए रंग बदलते हैं। लेकिन लोकल 18 से बात करते हुए विशेषज्ञ महादेव पटेल ने बताया कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। सांप इंसानों से भिड़ने के बजाय छिपने को प्राथमिकता देते हैं। उनकी रंग बदलने की क्षमता सीमित और धीमी होती है, लेकिन समाज में फैली कहानियां इसे रहस्यमय बना देती हैं।