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चिलचिलाती गर्मी में भी बिना फ्रिज के पानी रहेगा बर्फ, बेहद कमाल की है यह बोतल, मटका और फ्रिज भी फेल

Summer Water Cooling Tips: चिलचिलाती गर्मी में लोग ठंड की ओर भागने लगते हैं। हर किसी को बर्फ की तरह ठंडे पानी की जरूरत रहती है। घर पर मटका या फ्रिज से ठंडा पानी मिल जाता है। लेकिन पुराने समय में लोग बिना फ्रिज और मटके के भी ठंडा पानी पीते थे। बाजार में 100 रुपये की एक ऐसी बोतल मिलती है, जिसमें हमेशा पानी ठंडा बना रहता है

अपडेटेड Mar 26, 2025 पर 1:09 PM
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Summer Water Cooling Tips: पुराने समय में लोग देसी छागल का इस्तेमाल करते थे। इसमें पानी हमेशा ठंडा बना रहता है।

गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है। इस मौसम में बाजार में पानी की बोतलों की बिक्री काफी ज्यादा बढ़ जाती है। इस समय देश में बिसलरी, किनले, हिमालया, पतंजलि जैसी कई बड़ी ब्रांड पानी प्लास्टिक की बोतलों में पैक करके बेचती हैं। जब भी हम सफर करते हैं, तो अपनी प्यास बुझाने के लिए इन्हें खरीदते हैं। कुछ लोग घर से पानी को बोतलों में स्टोर करके साथ ले जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले पानी कपड़े के थैली में स्टोर किया जाता था। इसे छागल कहते थे। आज हम पुराने जमाने की पानी की बोतल के बारे में बताने जा रहे हैं।

अब बाजार में प्लास्टिक, स्टील, कॉपर और कांच की पानी की बोतलें मार्केट में आ चुकी हैं। आज हम एक ऐसी पानी की बोतल का जिक्र कर रहे हैं। जिसे न तो बिजली की जरूरत है और फ्रिज में रखने की जरूरत है। कहीं भी गर्म इलाके में चले जाएं। पानी हमेशा बर्फ की तरह ठंडा बना रहेगा।

छागल में पानी रहता है ठंडा-ठंडा


जब बाजार में बंद बोतलों में पानी नहीं मिलता था। तब लोग छागल में पानी लेकर चलते थे। छागल एक मोटे कपड़े (कैनवास) का थैला होता था। जिसका एक सिरा बोतल के मुंह जैसा होता था। वो एक लकड़ी के गुट्टे से बंद होता था। छागल में पानी भरकर लोग सफर में जाते थे। ट्रेन में सफर के दौरान लोग ट्रेन के बाहर खिड़की पर इसे टांग देते थे, बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छोटे-छोटे छेदों से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी। पानी की वो प्राकृतिक ठंडक बेमिसाल रहती है। मध्य प्रदेश के खरगोन के एक दुकानदार ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए कहा कि यह छागल महज 100 से 150 रुपये में मिल जाती है। हालांकि, पानी की क्षमता के अनुसार इसकी कीमत 300 से 500 तक भी होती है। इसमें पानी हमेशा ठंडा बना रहता है।

बॉर्डर पर सैनिकों से लेकर किसान करते थे इस्तेमाल

1980 दशक में सरहद पर देश की सीमा की रक्षा करने वाले सैनिकों के पास भी गश्त के दौरान छागल मिलती थी। खेतों में काम करने वाले किसान जब भी बैलगाड़ी पर अनाज लेकर मंडी की ओर जाते, तो छागल को बैलगाड़ी के खल्ले पर लटकाते थे। रास्ते में कोई राहगीर छागल का ठंडा पानी देखकर उसे मांगता था तो कोई भी इसके लिए मना नहीं करता था।

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