बिना प्रचार-विज्ञापन हर महीने ₹8 करोड़ कमाता है हरियाणा का यह ढाबा, जानें इसके सफलता के 3 राज
एक इंस्टाग्राम क्रिएटर ने बताया कि मुरथल का अमरीक सुखदेव ढाबा सालाना करीब 100 करोड़ रुपए कमाता है। उन्होंने बताया कि ढाबा हर दिन 5,000 से 10,000 ग्राहकों को सर्व करता है। इसे संभालने के लिए उनके पास करीब 500 कर्मचारियों की टीम है। ढाबे में लगभग 150 टेबल हैं और एक ग्राहक के लिए औसतन 45 मिनट का टर्नअराउंड टाइम रखा गया है
अमरीक सुखदेव की शुरुआत 1956 में सड़क किनारे एक छोटे से ढाबे से हुई थी
“चलो आज मुरथल चलते हैं अमरीक सुखदेव के पराठे खाने।” दिल्ली-NCR में रहने वाला शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने ये लाइन कभी न सुनी हो। मुरथल का ये मशहूर ढाबा, अमरीक सुखदेव अब सिर्फ पेट भरने की जगह नहीं, बल्कि अपने आप में एक पहचान बन गया है। दिल्ली से चंद घंटों की दूरी पर, NH-44 पर बसा ये ढाबा हर उम्र और वर्ग के लोगों के लिए एक पसंदीदा जगह है। हर दिन हजारों की संख्या लोग इसके पराठों और कई तरह के दूसरे व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं। दिन हो या रात का कोई भी समय, यहां भीड़ कभी कम नहीं होती। अब एक सोशल मीडिया वीडियो के जरिए ये खुलासा हुआ है कि इस ढाबे की हर महीने की कमाई लगभग 8 करोड़ रुपये है।
इस रेस्टोरेंट में आने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि इसकी कमाई बहुत ज्यादा है। लेकिन बहुत से लोगों को यह नहीं पता होगा कि अमरीक सुखदेव की शुरुआत सड़क किनारे एक छोटे से ढाबे से हुई थी।
सोशल मीडिया से सामने आई कमाई की कहानी
हाल ही में इंस्टाग्राम क्रिएटर रॉकी सग्गू कैपिटल ने अमरीक सुखदेव ढाबे की शुरुआत से अब तक की कहानी शेयर किया, जिसने काफी लोगों को ध्यान खींचा है। इसके साथ ही उन्होंने ढाबे की कमाई और उसके बिजनेस मॉडल पर भी बात किया।
इंस्टाग्राम क्रिएटर ने बताया कि आज यह रेस्टोरेंट सालाना करीब 100 करोड़ रुपए कमाता है। उन्होंने बताया कि अमरीक सुखदेव ढाबा हर दिन 5,000 से 10,000 ग्राहकों को सर्व करता है। इसे संभालने के लिए उनके पास करीब 500 कर्मचारियों की टीम है।
रॉकी ने इस जगह के इतिहास के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 1956 में सरदार प्रकाश सिंह ने मुरथल में एक छोटा सा ढाबा शुरू किया था। उस समय ढाबा एक साधारण ढाबे जैसा था, जिसमें एक टेंट लगा होता था, जहां दाल, रोटी, सब्जी और चावल जैसे बेसिक भोजन परोसे जाते थे। यह भोजन मुख्य रूप से हाईवे से गुजरने वाले ट्रक ड्राइवरों के लिए होता था। वे चारपाई पर बैठकर खुले में खाना खाते थे।
1990 में, उनके बेटे अमरीक और सुखदेव इस कारोबार से जुड़े। उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर काम करना शुरू किया और इस पारंपरिक ढाबे को एक व्यवस्थित रेस्टोरेंट की शक्ल दी। समय के साथ, मेन्यू का विस्तार हुआ। अब, यहां सिर्फ नॉर्थ इंडियन ही नहीं, बल्कि साउथ इंडियन डिशेज भी परोसी जाती हैं।
सफलता के 3 मुख्य स्तंभ
रॉकी के मुताबिक, अमरीक सुखदेव की कामयाबी के तीन बड़े कारण हैं-
भरोसे की नींव: पहला यह था कि मालिकों ने शुरुआती ग्राहकों के साथ कैसे भरोसा बनाया। वे ट्रक ड्राइवरों और कैब ड्राइवरों को मुफ्त या डिस्काउंट वाला खाना देते थे। इससे उन्हें एक लॉयल कस्टमर बेस बनाने में मदद मिली जो बाद में रेगुलर ग्राहकों में बदल गया।
स्वाद पर फोकस: रॉकी ने बताया ने इस ढाबे ने अपने स्वाद पर हमेशा फोकस किया है। आज भी, मालिक मेन्यू में कोई नया फूड आइटम जोड़ने से पहले उसे खुद चखते हैं। इससे खाने की क्वालिटी अच्छी और एक जैसी बनाए रखने में उन्हें मदद मिली।
"स्पीड और स्केल" का कमाल: रॉकी ने बताया ढाबे में लगभग 150 टेबल हैं और एक ग्राहक के लिए औसतन 45 मिनट का टर्नअराउंड टाइम रखा गया है। इससे हर दिन 9,000 ग्राहकों को सर्व करने में मदद मिलती है।
इतनी सफलता के बावजूद इस ब्रांड ने कभी विज्ञापनों पर फोकस नहीं किया। कोई टीवी एड नहीं, कोई सोशल मीडिया कैंपेन नहीं। इसकी जगह ये ढाबा सिर्फ माउथ-पब्लिसिटी के जरिए फेमस हुआ। आज इस ब्रांड की पहचान देशभर में है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान
जनवरी 2025 में, TasteAtlas ने अमरीक सुखदेव को ‘दुनिया के 100 सबसे प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट्स’ की सूची में शामिल किया। यह किसी भी भारतीय ढाबे के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
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