Total Lunar Eclipse September 2025: 7 और 8 सितंबर की रात को साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण लगेगा। 2018 के बाद ऐसा पहली बार होगा, जब चंद्र ग्रहण देश के लगभग सभी राज्यों से नजर आएगा। इसकी अवधि लगभग 82 मिनट की होगी और ये 2022 के बाद का सबसे लंगा चंद्र ग्रहण होगा़। खगोल विशषज्ञों के मुताबिक इसके बाद ऐसे नजारे के लिए 31 दिसंबर 2028 तक इंतजार करना होगा। ग्रहण के दौरान धरती की छाया में चंद्रमा को रंग लाल तांबई हो जाएगा, जिसकी वजह से इसे ब्लड मून कहा जा रहा है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा इसी तरह का नजर आएगा। इस दिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा है और इसी दिन से पितृ पक्ष की शुरुआत भी हो रही है।
पुणे स्थित राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर दिव्या ओबेराय ने बताया, 'अगले चंद्रग्रहण के लिए आपको 31 दिसंबर 2028 तक इंतजार करना होगा।' इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के विज्ञान, संचार, जन संपर्क एवं शिक्षा (स्कोप) अनुभाग के प्रमुख नीरुज मोहन रामानुजम ने कहा कि सूर्य ग्रहण के विपरीत, पूर्ण चंद्र ग्रहण को देखने के लिए विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती और इसे नंगी आंखों, दूरबीन या टेलीस्कोप से देखा जा सकता है।
पूर्ण ग्रहण रात 11.01 बजे से रात 12.23 बजे तक रहेगा। इसकी अवधि 82 मिनट होगी। आंशिक ग्रहण सात सितंबर को रात 9.57 बजे से देखा जा सकेगा। ये रात 1.26 बजे समाप्त होगा और पूर्ण ग्रहण आठ सितंबर को सुबह 2.25 बजे समाप्त होगा। इस दौरान चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया से ढक जाएगा और ताँबे के रंग का लाल रंग (ब्लड मून) दिखाई देगा।
कब होता है पूर्ण चंद्र ग्रहण
पृथ्वी की छाया से ढक जाएगा चंद्रमा
नीरुज मोहन रामानुजम ने कहा, ‘उपछाया ग्रहण, जिसमें चंद्रमा पृथ्वी की हल्की छाया से ढक जाता है, इसे बिना सहायता के आंखों से देख पाना कठिन होता है और इसके लिए दूरबीन या टेलीस्कोप की आवश्यकता होती है। लेकिन आंशिक ग्रहण, जिसमें पृथ्वी की छाया चंद्रमा के एक हिस्से को ढक लेती है, उसे बिना किसी सहायता के आंखों से आसानी से देखा जा सकता है।’
इस वजह से लाल हो जाता है चंद्रमा और दिखता है ब्लड मून
पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा का रंग इसलिए लाल हो जाता है, क्योंकि धरती, सूरज और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। इस दौरान सूरज की रोशन धरती के वायुमंडल से हो कर गुजरती है, जो इसे मोड़ देता है। मुड़ने पर यह बिखर जाती है। इससे प्रकाश की नीली और बैंगनी तरंगदैर्घ्य बिखर जाती है, जबकि लाल और नारंगी तरंगदैर्घ्य किरणें चंद्रमा की सतह पर पहुंचती हैं। इसकी वजह से चांद का रंग तांबे जैसा लाल नजर आता है। इसलिए इसे ब्लड मून कहते हें और ऐसा सिर्फ पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान ही होता है। जो वर्ष में दो से तीन बार होता है।