7 सितंबर 2025 को लगने वाला यह साल का दूसरा और अंतिम चंद्रग्रहण भारत सहित कई जगहों पर दिखाई देगा। भारतीय संस्कृति में ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं और परंपराएं हैं, खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को लेकर। कहा जाता है कि इस दौरान गर्भवती महिलाएं को सावधानी बरतनी चाहिए, नए वस्त्र न पहनें, घर से बाहर न निकलें और खाने-पीने में परहेज करें। लेकिन क्या विज्ञान के नजरिए से इन बातों की कोई सच्चाई है?
सर गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. साक्षी नायर ने स्पष्ट किया है कि ग्रहण का गर्भवती महिला या उसके बच्चे पर कोई वैज्ञानिक असर नहीं होता। ग्रहण प्रकृति की एक खगोलीय घटना है, जिसमें चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है, लेकिन इसका कोई नकारात्मक प्रभाव गर्भावस्था पर नहीं पड़ता है।
वैज्ञानिक शोध कहते हैं कि ग्रहण के दौरान वातावरण में कोई ऐसी ऊर्जा या विकिरण नहीं बढ़ती जो गर्भवती महिला या भ्रूण को नुकसान पहुंचाए। जो पुरानी मान्यताएं प्रचलित हैं, वे धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित हैं। हालांकि, ग्रहण के समय गर्भवती महिला को आराम करने और तनाव मुक्त रहने की सलाह दी जाती है, जिससे उनकी मानसिक स्थिति अच्छी बनी रहे और वे खुद को सुरक्षित महसूस करें।
डॉ. नायर ने यह भी बताया कि यदि गर्भवती महिला ग्रहण के समय उपवास रखती हैं या बिना खाए-पिए ज्यादा समय बिताती हैं, तो इससे उनकी और बच्चे की सेहत प्रभावित हो सकती है। इसलिए अगर उपवास रख रही हैं तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। इसी तरह, ग्रहण के समय मेहनत और भारी काम से बचना चाहिए, क्योंकि आराम और तंदुरुस्ती दोनों गर्भावस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण के दौरान कुछ सावधानियां जैसे घर में रहें, नए वस्त्र न पहनें, नुकीली वस्तुएं न छुएं आदि पालन करना आस्था का विषय है। लेकिन इसे वैज्ञानिक तथ्य मानना गलत होगा। असली सुरक्षा स्वस्थ आहार, नियमित चिकित्सकीय जांच और मानसिक संतुलन बनाए रखने में है।