अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने नए H-1B वीजा आवेदनों पर 1,00,000 डॉलर की मोटी फीस लगाने का ऐलान किया है। इस कदम की न केवल भारत जैसे देशों, बल्कि अमेरिकी मीडिया ने भी आलोचना की है। कई अमेरिकी मीडिया आउटलेट्स ने चेतावनी दी है कि यह पॉलिसी उस ग्लोबल टैलेंट को अमेरिका से दूर कर सकती है, जिसने अमेरिका को एक टेक्नोलॉजी सुपरपावर बनने में मदद की है। अमेरिकी मीडिया ने इस बात पर रोशनी डाली है कि कैसे भारतीय इंजीनियर और कोडर दशकों से सिलिकॉन वैली में इनोवेशन की रीढ़ रहे हैं।
CNBC के मुताबिक, साइज ग्रुप के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर चार्ल्स-हेनरी मोनचाउ का कहना है, "इनोवेशन के मामले में यह कदम निश्चित रूप से अमेरिका के लिए तकलीफदेह हो सकता है।" CNBC ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि इस कदम से अमेरिका के 'दुनिया के प्रमुख टैलेंट हब' बनने से दूर होने का खतरा है। कनाडा, सिंगापुर और ब्रिटेन ने पहले ही विदेशी टेक वर्कर्स के लिए रास्ते आसान बनाने शुरू कर दिए हैं। इन वर्कर्स में से कई भारतीय हैं। वहीं वॉशिंगटन उनकी एंट्री को अत्यधिक महंगा बना रहा है।
अमेरिका में टॉप टेक कंपनियों के लिए काम करने के लिए हजारों स्किल्ड भारतीय, वीजा रूट का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। अमेरिकी सरकार ने स्पष्ट किया है कि H-1B वीजा आवेदन की 1 लाख रुपये की नई फीस केवल नए एप्लीकेंट्स पर लागू होगी और मौजूदा वीजाहोल्डर्स या वीजा रिन्यूअल पर इसका कोई असर नहीं होगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस कदम को भारत के प्रतिभाशाली दिमागों पर "सीधा प्रहार" बताया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में कहा, "हाल के दशकों में ऐसे कुछ ही प्रोग्राम आए हैं, जिन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उस गहराई से आकार दिया, जितनी कि H-1B वीजा ने। खासकर भारतीय इंजीनियरों को सिलिकॉन वैली लाने में उनकी भूमिका के चलते।" यह भी कहा कि H-1B वीजा आवेदनों पर 1,00,000 डॉलर की फीस के कदम से शिक्षा, रिसर्च और इनोवेशन में दशकों से चले आ रहे अमेरिका-भारत सहयोग के बिखरने का खतरा है। कहा गया है कि इस कदम से अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत से कर्मचारियों को नियुक्त करना लगभग 20-30 गुना महंगा हो जाएगा।
एक एनालिसिस में CNN ने कहा कि ट्रंप का नया फैसला भारत के स्किल्ड प्रोफेशनल्स पर असमान रूप से प्रभाव डालेगा और लाखों लोगों के करियर की राह को उलट-पुलट कर देगा। यह उन टॉप टेक कंपनियों के बिजनेस मॉडल को भी प्रभावित करेगा, जो ग्लोबल टैलेंट पर बहुत अधिक निर्भर हैं। आज अमेरिका में कुछ सबसे सफल कॉरपोरेट लीडर H-1B सिस्टम की ही देन हैं। CNN की रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला, अल्फाबेट के सुंदर पिचई, आईबीएम के अरविंद कृष्णा और एडोब के शांतनु नारायण, सभी भारत में पैदा हुए और उन्होंने अमेरिकी यूनिवर्सिटीज से डिग्री हासिल की।
नए फैसले को कैसे अच्छा बता रहे हैं अमेरिकी अधिकारी
व्हाइट हाउस के अधिकारियों का कहना है कि H-1B वीजा को लेकर पॉलिसी में बदलाव से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि कंपनियां घरेलू यानि कि अमेरिकी कर्मचारियों को नियुक्त करने को वरीयता दें। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता टेलर रोजर्स ने एक बयान में कहा, "राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी कर्मचारियों को वरीयता देने का वादा किया था, और यह कदम कंपनियों को सिस्टम को स्पैम करने और सैलरी कम करने से हतोत्साहित करके ठीक यही करता है।"