China K-Visa: चीन ने हाल ही में K-वीजा प्रोग्राम की शुरुआत की है। इस वीजा प्रोग्राम मकसद दुनिया भर के साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर के एक्सपर्ट को अपने देश में काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है। K-वीजा खास तौर पर साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में कुशल युवाओं के लिए बनाया गया है। इस वीजा का सबसे बड़ी बात है कि इसे पाने के लिए आपके पास पहसे से किसी नौकरी का ऑफर होना जरूरी नहीं है। ये वीजा उन लोगों के लिए मौका है, जो चीन में काम करना चाहते हैं लेकिन अभी किसी कंपनी से जुड़े नहीं हैं।
चीन का K-वीजा प्रोग्राम अमेरिका के H-1B वीजा को टक्कर देता हुआ नजर आ रहा है। हाल ही में H-1B वीजा अब सख्त इमिग्रेशन नीतियों के कारण सीमित हो गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ
अमेरिका की जगह चीन बन रहा ऑप्शन
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय आईटी विशेषज्ञ वैष्णवी श्रीनिवासगोपालन इस नए K-वीजा को करियर के लिए एक बेहतर मौका मानती हैं। उनका कहना है कि चीन का टेक्नोलॉजी सेक्टर तेजी से आगे बढ़ रहा है। वहां का वर्क कल्चर अब वैश्विक स्तर पर आकर्षक बन रहा है। वहीं, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इमिग्रेशन नीतियां सख्त किए जाने और H-1B वीजा की फीस 1 लाख डॉलर तक बढ़ाए जाने के बाद कई विदेशी छात्र और पेशेवर अब चीन जैसे ऑप्शन की ओर रुख कर रहे हैं।
शंघाई स्थित कंसल्टेंसी न्यूलैंड चेज के डायरेक्टर एडवर्ड हू के मुताबिक, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई पेशेवर K-वीजा प्रोग्राम में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
वीजा में दिखा रहे दिलचस्पी
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व हासिल करना है। इसी दिशा में सरकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर और रोबोटिक्स जैसे सेक्टरों में बड़े पैमाने पर इंनवेस्टमेंट कर रही है। देश में बेरोजगारी और स्किल की कमी जैसी दिक्कतों से निपटने के लिए चीन अब विदेशी टैलेंट को आकर्षित करने पर जोर दे रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक, चीन में काम करना आसान नहीं है, भाषा की दिक्कत और इंटरनेट सेंसरशिप यानी ‘ग्रेट फायरवॉल’ विदेशी कर्मचारियों के लिए बड़ी चुनौती है।